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ब्रह्मज्ञान

अरु आनंद
Type: Print Book
Genre: Politics & Society, Philosophy
Language: Hindi
Price: ₹210 + shipping
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Description

लेखक: अरु आनंद
यह उपन्यास उन अनसुनी कहानियों के मौन साक्षी हैं जिन्हें समाज अक्सर अनदेखा कर देता है?
यह पुस्तक उमानाथ जी की मार्मिक यात्रा का दस्तावेज़ है — एक ऐसे वृद्ध की कथा, जिसे उसके अपनों ने वृद्धाश्रम में छोड़ दिया। लेकिन यह कहानी सिर्फ उनकी नहीं, बल्कि उन अनगिनत बुज़ुर्गों की भी है, जो अपने ही घरों में, अपने ही लोगों के बीच, असहाय और अकेले हो गए हैं।
यह उपन्यास सविता जी की वेदना, मासूम रिया की मुस्कान, और वृद्धाश्रम के सन्नाटों में गूंजती उन आवाज़ों को संजोता है जो अक्सर हमारी व्यस्तता में दब जाती हैं। इसमें बदलते रिश्तों की परिभाषाएँ हैं, स्मृतियों की कसक है, और उम्र के अंतिम पड़ाव पर गरिमापूर्ण जीवन की लड़ाई है।
लेकिन यह कहानी केवल बुज़ुर्गों तक सीमित नहीं है। हाल ही में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, हर साल लगभग 8,50,000 लोग अकेलेपन के कारण मृत्यु को प्राप्त होते हैं — यह आंकड़ा एक मौन त्रासदी है। और विशेष रूप से चिंताजनक बात यह है कि 18 से 29 वर्ष के युवा भी इस अकेलेपन से गहराई से प्रभावित हो रहे हैं।
यह उपन्यास एक प्रश्न उठाता है — क्या आधुनिक जीवनशैली, सोशल मीडिया की चमक और कमजोर होती पारिवारिक संरचनाएँ हमें भीतर से खोखला कर रही हैं? क्या हम अपने आसपास के लोगों की चुप्पियों को सुन पा रहे हैं?
उमानाथ जी की वृद्धाश्रम में बीतती हर घड़ी, एक नई अनुभूति, एक नया चिंतन, और एक नई परिभाषा गढ़ती है — करुणा, आत्मसम्मान और मानवीय संबंधों की।
क्या हर व्यक्ति को उम्र, वर्ग या पीढ़ी से परे सम्मान, आत्मनिर्भरता और सामाजिक स्वीकार्यता नहीं मिलनी चाहिए।

About the Author

लेखक: अरु आनंद
यह उपन्यास उन अनसुनी कहानियों के मौन साक्षी हैं जिन्हें समाज अक्सर अनदेखा कर देता है?
यह पुस्तक उमानाथ जी की मार्मिक यात्रा का दस्तावेज़ है — एक ऐसे वृद्ध की कथा, जिसे उसके अपनों ने वृद्धाश्रम में छोड़ दिया। लेकिन यह कहानी सिर्फ उनकी नहीं, बल्कि उन अनगिनत बुज़ुर्गों की भी है, जो अपने ही घरों में, अपने ही लोगों के बीच, असहाय और अकेले हो गए हैं।
यह उपन्यास सविता जी की वेदना, मासूम रिया की मुस्कान, और वृद्धाश्रम के सन्नाटों में गूंजती उन आवाज़ों को संजोता है जो अक्सर हमारी व्यस्तता में दब जाती हैं। इसमें बदलते रिश्तों की परिभाषाएँ हैं, स्मृतियों की कसक है, और उम्र के अंतिम पड़ाव पर गरिमापूर्ण जीवन की लड़ाई है।
लेकिन यह कहानी केवल बुज़ुर्गों तक सीमित नहीं है। हाल ही में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, हर साल लगभग 8,50,000 लोग अकेलेपन के कारण मृत्यु को प्राप्त होते हैं — यह आंकड़ा एक मौन त्रासदी है। और विशेष रूप से चिंताजनक बात यह है कि 18 से 29 वर्ष के युवा भी इस अकेलेपन से गहराई से प्रभावित हो रहे हैं।
यह उपन्यास एक प्रश्न उठाता है — क्या आधुनिक जीवनशैली, सोशल मीडिया की चमक और कमजोर होती पारिवारिक संरचनाएँ हमें भीतर से खोखला कर रही हैं? क्या हम अपने आसपास के लोगों की चुप्पियों को सुन पा रहे हैं?
उमानाथ जी की वृद्धाश्रम में बीतती हर घड़ी, एक नई अनुभूति, एक नया चिंतन, और एक नई परिभाषा गढ़ती है — करुणा, आत्मसम्मान और मानवीय संबंधों की।
क्या हर व्यक्ति को उम्र, वर्ग या पीढ़ी से परे सम्मान, आत्मनिर्भरता और सामाजिक स्वीकार्यता नहीं मिलनी चाहिए।

Book Details

Publisher: Self published
Number of Pages: 79
Dimensions: 5.83"x8.27"
Interior Pages: B&W
Binding: Paperback (Perfect Binding)
Availability: In Stock (Print on Demand)

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