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ऊं नमो नारायण के संग सतगुरु जी को चरण प्रणाम
मात सरस्वती जी की कृपा से लेखन का निरंतर काम
माता वैष्णवी देवी जी का महिमा मंडन करु सरेआम
अशोक कुमार जाखड़ निस्वार्थी कहलाता साहित्यिक नाम
माता जी के दर्शन किया अगस्त उन्नीस सौ अस्सी में जान
माता जी से अर्ज लगाई सरकारी सेवा के लिए उस दौरान
मुझे सरकारी मिल गई नौकरी चार महिने के ही दरम्यान
लेकिन गफलत कर बैठा फिर दर्शन नही कर पाया मान
साठ साल का हुआ रिटायर फेर एक दिन ध्यान किया
माता जी का स्मरण करके अपनी गलती मान लिया
गलती हो गई क्षमा मांगता फिर माता जी से वचन दिया
निस्वार्थी माता वैष्णवी देवी दर्शन लिखने को किया हिया
देर की नही लिखने बैठा मन में कुछ नही सुझा और
उत्पत्ति,इतिहास,कथा पर त्रिकुटा धाम पर किया गौर
मंदिर परिचय, यात्रा दर्शन, मंदिर उत्पत्ति जिस ठोर
गलती मान क्षमा मांगी लिखने का शुरु कर दिया दौर
भगवान कल्कि और वैष्णवी का संबंध का का प्रसार
प्रभु श्रीराम अपनायेगे इस कारण माताजी ली अवतार
तब तक माता वैष्णवी देवी यहां भक्तो का करे उद्वार
एक सौ आठ नाम की माला काव्य रुप में है क्रमवार
कोई भी नही अतिश्योक्ति नही झूठ का नाम निशान
जैसा देखा पढा सुना है उसका वैसा ही किया बखान
मां की महिमा मां को अर्पित हम केवल सेवक नादान
माता वैष्णवी देवी जी को यहां भेजे खुद ही भगवान
डाँ चंद्रदत्त शर्मा, चंद्रकवि कवि के इसमें लिए उदगार
डाँ अर्चना श्रेया जी के भावनात्मक और गूढ विचार
दोनों के सुन्दर सहयोग को दिल से पृकट करु आभार
पुस्तक कैसी है हर पाठक की प्रतिक्रिया का सत्कार
जैसा भी लिखने पाया हूँ और जो भी हृदय पर आया
माता वैष्णवी देवी जी की महिमा पुस्तक में दर्शाया
यह भी साक्षात सत्य है माता का स्वरुप दयालु पाया
अशोक कुमार जाखड़ निस्वार्थी श्रृद्धा से कलम चलाया
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