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"लिसानी तश्कीलात और तख़्लीक़ी तजरिबात का निगार-ख़ाना ... जिसमें जमालियाती और लिसानी तजरिबे की एक दुनिया आबाद नज़र आती है।" - हक़्क़ानी अल-क़ासमी, उर्दू सहाफ़ी और नक़्क़ाद
“...‘नाक़िद’ का कलाम बेहद ख़ूबसूरत है। जहाँ इनकी सोच में गहराई है, वहीं ख़यालात, तसव्वुरात और जज़्बात में शिद्दत है, नयापन है, मे’यारी है ...” - डाक्टर राधिका चोपड़ा, ग़ज़ल गायिका
‘अधूरे हाफ़िज़े’ आदित्य पन्त ‘नाक़िद’ का दूसरा कविता संग्रह है। देवनागरी और उर्दू लिपियों में प्रकाशित इस संग्रह में ‘नाक़िद’ ने एक प्रयोग के तौर पर २४ बहरों (मीटर) के ६५ अलग-अलग आहंगों में ग़ज़लें, नज़्में, क़ित’ए और फ़र्द कहे हैं। इनमें कई ऐसे हैं जिनका प्रयोग उर्दू शा’इरी में या तो हुआ ही नहीं है या इक्का-दुक्का जगह ही नज़र आता है। इस संग्रह में शामिल कविताओं में भाषा और विषयों की विविधता दिखाई पड़ती है। एक ओर जहाँ क्लासीकी ग़ज़ल के मज़ामीन की हल्की सी झलक है, वहीं मौजूदा आलमी हालात पर तब्सिरा भी नज़र आता है। कहीं इन्सानी कशमकश रू-ब-रू होती है, तो कहीं व्यक्तिगत जिद्द-ओ-जह्द के आसार दिखते हैं।
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