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"किस्सा भगत पूरणमल" हरयाणवी लोक-साहित्य की अमूल्य धरोहर को नयी सांस देता है। यह केवल एक लोककथा का पुनःकथन नहीं, बल्कि छंद–शास्त्र, लोक–संवेदना और सांस्कृतिक विमर्श का अद्वितीय संगम है।
लेखक आनन्द कुमार आशोधिया ने संत–नायक पूरणमल की जीवनगाथा — त्याग, साधना, अन्याय, क्षमा और अध्यात्म से भरी — को हरयाणवी रागनी के रूप में सजाया है।
हर रचना में दो स्वर हैं — एक ओर लोक–काव्य की सहज, भावपूर्ण लय; दूसरी ओर तटस्थ, शोधयोग्य साहित्यिक समीक्षा। पिंगल शास्त्र की शुद्धता, हरयाणवी बोली का ठेठपन, और मंचीय प्रस्तुति की ऊर्जा — सब इस संग्रह में एक साथ मिलते हैं।
यह पुस्तक लोकगायकों, शोधकर्ताओं, साहित्यप्रेमियों और संस्कृति–संरक्षकों के लिए एक संदर्भ–ग्रंथ है, जो हरयाणवी साहित्य के पुनर्जागरण में मील का पत्थर साबित होगी।
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