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हीर राँझा-हरयाणवी लोक रागणी संग्रह (पिंगल समीक्षा सहित)

आनन्द कुमार आशोधिया
Type: Print Book
Genre: Poetry
Language: Hindi
Price: ₹291 + shipping
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Description

हीर राँझा – हरयाणवी लोक रागणी संग्रह (पिंगल समीक्षा सहित)
लेखक: आनन्द कुमार आशोधिया
यह संग्रह हरियाणवी लोक-संस्कृति की आत्मा को छंदों और सुरों में बाँधने का एक अनूठा प्रयास है। हीर राँझा की अमर प्रेमगाथा को हरियाणवी रागणी शैली में प्रस्तुत करते हुए लेखक ने इसे केवल एक भावनात्मक कथा नहीं, बल्कि एक शास्त्रीय और सांस्कृतिक दस्तावेज़ बना दिया है। रागणी, जो हरियाणा की लोकध्वनि है, यहाँ छंदशास्त्र की कसौटी पर परखी गई है—पिंगल समीक्षा सहित।
इस पुस्तक की विशेषता यह है कि प्रत्येक रचना को छंद-विधान, यति-विराम, वर्ण-गणना और दोष-लक्षण की दृष्टि से विश्लेषित किया गया है। दोहा, चौपाई, रोला, सोरठा, दुकलिया जैसे छंदों का प्रयोग करते हुए लेखक ने भाव और शास्त्र का अद्भुत समन्वय प्रस्तुत किया है। रचनाओं में श्रृंगार रस की कोमलता, करुण रस की गहराई और वीर रस की गरिमा स्पष्ट रूप से दिखाई देती है।
उदाहरणस्वरूप, एक रागणी में हीर की पीड़ा इस प्रकार व्यक्त होती है:
“तेरे बिना मैं पागल होग्या, इब क्यूँकर करूँ गुजारा
तेरा जाइयो सत्यानाश रै हीरे, तनै बेसोधी में मारा”
यह संग्रह केवल प्रेमकथा नहीं, बल्कि सामाजिक चेतना, सांस्कृतिक पुनर्जागरण और लोकध्वनि का शोधग्रंथ है। लेखक ने हीर-राँझा के पात्रों को लोकबोली में ढालते हुए उन्हें क्षेत्रीयता और सार्वभौमिकता दोनों से जोड़ा है। हीर की पीड़ा, राँझा का वैराग्य, सेहती की चतुराई और कैदू की कुटिलता—सब कुछ रागणियों के माध्यम से जीवंत हुआ है।
पुस्तक का अंतिम भाग हीर-राँझा को लोकदेवता के रूप में प्रतिष्ठित करता है:
“झंग नगर के पावन धाम पै, फूल चढ़ावैं लोग लुगाई
तख़्त हज़ारे में दीप जळावैं, श्रद्धा मन में खूब समाई”
लेखक श्री आनन्द कुमार आशोधिया—भारतीय वायुसेना के पूर्व वारंट अधिकारी, हिंदी भाषा के संवर्धन हेतु सम्मानित, और हरियाणवी लोक साहित्य के संरक्षक—ने इस संग्रह को साहित्यिक अनुशासन, सांस्कृतिक संवेदना और डिजिटल युग की प्रस्तुति के साथ प्रस्तुत किया है। यह पुस्तक शोधार्थियों, लोकगायकों, साहित्यप्रेमियों और सांस्कृतिक संरक्षकों के लिए एक अनिवार्य संदर्भ बन सकती है।
यदि आप लोक-संस्कृति की गहराइयों में उतरना चाहते हैं, छंदों की लय में प्रेम और प्रतिरोध को महसूस करना चाहते हैं, और हरियाणवी रागणी की गरिमा को समझना चाहते हैं—तो यह संग्रह आपके लिए है।

About the Author

आनन्द कुमार आशोधिया — भारतीय वायुसेना के पूर्व वारंट अधिकारी, हिंदी भाषा के संवर्धन हेतु सम्मानित, और हरियाणवी लोक साहित्य के समर्पित संरक्षक। 32 वर्षों की सेवा के बाद इन्होंने साहित्य को अपना जीवन-धर्म बनाया। अधराजण, थारा मुद्दा थारी बात, किस्सा भगत पुरणमल जैसी कृतियों के माध्यम से इन्होंने न केवल लोक साहित्य को संरक्षित किया, बल्कि उसे डिजिटल युग में पुनः जीवंत किया।

उनकी लेखनी में अनुभव की गहराई, संवेदना की सच्चाई और संस्कृति की चेतना स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। यह संग्रह उनके साहित्यिक, सांस्कृतिक और सामाजिक योगदान का प्रमाण है।

Book Details

ISBN: 9788198995292
Number of Pages: 241
Dimensions: 5.5"x8.5"
Interior Pages: B&W
Binding: Paperback (Perfect Binding)
Availability: In Stock (Print on Demand)

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