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यह मेरा चौथा व्यंग्य-संकलन है। पहला 'अन्तरात्मा का उपद्रव' 1982 में प्रकाशित हुआ था। तभी पहला कहानी-संग्रह 'तीसरा बेटा' भी आया। उसके बाद स्थितियों का ऐसा चक्र चला कि कहानी-संग्रह तो निकलते रहे, लेकिन अगला व्यंग्य-संग्रह तीन चार प्रकाशकों के पास लम्बे समय तक रहने के बाद भी प्रकाशित नहीं हुआ। पराग प्रकाशन के श्री श्रीकृष्ण गुप्ता के द्वारा पांडुलिपि स्वीकार की गयी और पहला प्रूफ भी निकाला गया, लेकिन फिर पारिवारिक परिस्थितियों के कारण उन्होंने प्रकाशन का काम बन्द कर दिया। इस बीच सभी प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में मेरी कहानियाँ और व्यंग्य प्रकाशित होते रहे।
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