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"दुविधा मेरे कृष्ण की" एक भावनात्मक और चिंतनशील कृति है, जो श्रीकृष्ण के जीवन के उस पक्ष को उजागर करती है जिसे अब तक बहुत कम समझा गया है — उनके अंतर्मन की व्यथा, उनकी दुविधा, और उनके त्याग की गहराई।
इस पुस्तक में लेखक/लेखिका ने उन अनदेखे क्षणों को उजागर करने का प्रयास किया है, जब श्रीकृष्ण ने मानवता के कल्याण हेतु अपने निजी दुखों को छुपाकर पूरे युग का बोझ अपने कंधों पर उठाया।
यह रचना केवल एक धार्मिक या पौराणिक प्रस्तुति नहीं है, बल्कि श्रीकृष्ण के मानवीय पक्ष की एक ऐसी यात्रा है जो हमें यह सोचने पर विवश करती है कि —
"क्या ईश्वर के भी मन में दुविधा हो सकती है?"
यदि आप श्रीकृष्ण को केवल एक भगवान नहीं, बल्कि एक संवेदनशील आत्मा, त्यागमयी मार्गदर्शक और मौन सहनशील मनुष्य के रूप में जानना चाहते हैं — तो यह पुस्तक आपके लिए है।
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