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बिन बच्चों के हर उत्सव में
खाली लगता है प्याला
नशा नहीं दे पाती कुछ भी
दूजी और कोई हाला
समाचार गर मिल जाता है
पापा हम आने वाले हैं
रंग रंगीला उत्सव होता
खिल जाती है मधुशाला
‘‘बच्चों की मधुशाला’’ बच्चों की गतिविधियों पर लिखी गई एक काव्य माला है ।
‘‘हर पल मस्ती में जीता है, केवल बचपन का प्याला’’ यह इसका आधार है ।
बहु आयामी रंगों से रंगी इस काव्य माला में बच्चों की मस्तियों का चित्रण कुछ इस तरह है - ‘‘बिन पायल के रूनझुन होती, ठुमक ठुमक जब चलता है’’ या ‘‘मस्ती में चलता है ऐसे, से पी ली हो हाला’’ ।
मां के महत्व को ऊँचाइयां कुछ इस तरह दी गई हैं - ‘‘दुनिया निर्जन हो जाती, गर माँ ये पीड़ा ना सहती’’ ।
बच्चों के समुचित विकास के लिए कुछ, प्यारे-प्यारे सुझाव हैं - ‘‘ अधिकार सभी को खुश रहकर, दुनियां में जीने का है, तुलना से मत कुंठित करना, हंसती खिलती मधुशाला’’ ।
जीवन की कड़वी सच्चाई ‘‘हो सकता है साथ हमारा, छोड़े अपना ही प्याला’’ ।
जीवन का फलसफा - ‘‘खाली अपना नहीं समझना, थोड़ा खाली हर प्याला’’ । और अन्त में सिद्ध किया है - ‘‘सुख दुनियां में भरे पड़े हैं, सच ये भी है झूठ नहीं, पर सुख के सर्वोच्च शिखर पर, है बच्चों की मधुशाला’’ ।
एक लम्बे अर्से बाद, हिन्दी साहित्य में, इतना प्रभावशाली काव्य पढ़ने मिला । मंत्र मुग्ध करने वाली रूबाईयों से सजी, इस काव्य-माला की कोई न कोई रूबाई हर पाठक के जीवन को स्पर्श करेगी । ‘‘बच्चों की मधुशाला’’ हर उस इन्सान को पसन्द आएगी जो बचपन से प्यार करता है, बच्चों से प्यार करता है, बच्चों की कामना करता है, नाती-पोतों की कामना करता है। इस काव्य-माला में किसी अच्छे जासूसी उपन्यास की तरह, शुरू से अन्त तक बांधे रखने की क्षमता है । आसान शब्दों में, बहुत सरल, गहरे अर्थो में डूबी, मन को छू लेने वाली रूबाईयां, सुखद एहसास कराती हैं । तेजी से फैल रहे अंग्रेजी के दायरे में, हिन्दी साहित्य के दबदबे को बनाए रखने, इस तरह के सरल और मनोरंजक साहित्य की अत्याधिक आवश्यकता है ।
-- डॉ मधुसूदन राय
Re: बच्चों की मधुशाला
BACHCHON KI MADHOOSHALA IS AN AMAZING COLLECTION OF LITERARY WORK. I HAVE A CHILD AND WHILE GOING THROUGH THE STANZAS ONE AFTER ANOTHER I JUST COULD'NT RESIST GOING TO THE NEXT STANZA WHICH REMINDED ME OF MY CHILDHOOD DAYS AND WHAT WOULD I HAVE BEEN AND NOW I CAN CORELATE THE SAME WITH MY CHILD . IN MY VIEW MR GIRISH VERMA HAS PUT UP AN ORIGINAL THOUGHT GIVEN A CHANCE I WOULD ALWAYS WANT TO MEET THE AMAZING POET WHO HAS GOT THE WONDERFUL ART OF PENNING DOWN HIS ORIGINAL THOUGHTS AND IDEAS. RAREST OF THE RARE WE FIND SOME WORK LIKE THIS. MR GIRISH VERMA HAS DONE A COMMENDABLE WORK AND I REQUEST HIM TO PLEASE KEEP UP THE ART OF WONDERFUL WRITING. THE BEAUTY OF THIS WORK CANNOT BE EXPRESSED IN WORDS AND IT WILL BE A MATTER OF IMMENSE HONOUR IF ONLY I COULD MEET YOU AND WHY ME ALONE I AM SURE WE ALL READERS WILL BE SOON HONOURED TO READ SOME MORE OF YOUR WORK.
HEARTIEST REGARDS .......
ASHISH SINHA