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(2 Reviews)

बच्चों की मधुशाला

गिरीश वर्मा
Type: Print Book
Genre: Literature & Fiction, Poetry
Language: Hindi
Price: ₹250 + shipping

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Description

बिन बच्चों के हर उत्सव में
खाली लगता है प्याला
नशा नहीं दे पाती कुछ भी
दूजी और कोई हाला
समाचार गर मिल जाता है
पापा हम आने वाले हैं
रंग रंगीला उत्सव होता
खिल जाती है मधुशाला
‘‘बच्चों की मधुशाला’’ बच्चों की गतिविधियों पर लिखी गई एक काव्य माला है ।
‘‘हर पल मस्ती में जीता है, केवल बचपन का प्याला’’ यह इसका आधार है ।
बहु आयामी रंगों से रंगी इस काव्य माला में बच्चों की मस्तियों का चित्रण कुछ इस तरह है - ‘‘बिन पायल के रूनझुन होती, ठुमक ठुमक जब चलता है’’ या ‘‘मस्ती में चलता है ऐसे, से पी ली हो हाला’’ ।
मां के महत्व को ऊँचाइयां कुछ इस तरह दी गई हैं - ‘‘दुनिया निर्जन हो जाती, गर माँ ये पीड़ा ना सहती’’ ।
बच्चों के समुचित विकास के लिए कुछ, प्यारे-प्यारे सुझाव हैं - ‘‘ अधिकार सभी को खुश रहकर, दुनियां में जीने का है, तुलना से मत कुंठित करना, हंसती खिलती मधुशाला’’ ।
जीवन की कड़वी सच्चाई ‘‘हो सकता है साथ हमारा, छोड़े अपना ही प्याला’’ ।
जीवन का फलसफा - ‘‘खाली अपना नहीं समझना, थोड़ा खाली हर प्याला’’ । और अन्त में सिद्ध किया है - ‘‘सुख दुनियां में भरे पड़े हैं, सच ये भी है झूठ नहीं, पर सुख के सर्वोच्च शिखर पर, है बच्चों की मधुशाला’’ ।

About the Author

नाम - श्री गिरीश वर्मा | शिक्षा - बी.एस.सी. एम.ए. (अर्थशास्त्र) | पता - 504, संजीवनी नगर, जबलपुर (म.प्र.) | मोबाइल - 9907874211 ईमेल - girish.vermaji@gmail.com । प्रकाशित सामग्री :– उपन्यास - ‘अपने अपने दर्द’ पत्र ; पत्रिकाओं मे कुछ लेख एवं कविताएं ; बच्चों के लिए लिखी गई एक उपन्यास श्रृंखला शीघ्र प्रकाशित होने वाली है । शौक:- पढ़ना, लिखना, घूमना, खेलना और बच्चों की भोली भाली मस्तियों का आनन्द लेना । इच्छाएं :- अपने लिए एक सीमित इच्छा - ‘‘जीवन भर जी भर कर पी भरा न पर मन का प्याला बच्चों के बच्चे फिर उनके बच्चों की देखूं हाला’’ दुनियां के लिए एक असीमित इच्छा - “दुनियां भर के नन्हे मुन्ने हुष्ट पुष्ट और सुखी रहें तब ही बना पाएंगे कल वो जग को प्यारी मधुशाला” ।

Book Details

Publisher: Girish Verma
Number of Pages: 114
Dimensions: 5.83"x8.27"
Interior Pages: B&W
Binding: Paperback (Perfect Binding)
Availability: In Stock (Print on Demand)

Ratings & Reviews

बच्चों की मधुशाला

बच्चों की मधुशाला

(5.00 out of 5)

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2 Customer Reviews

Showing 2 out of 2
ashishsinha_navy 11 years, 8 months ago

Re: बच्चों की मधुशाला

BACHCHON KI MADHOOSHALA IS AN AMAZING COLLECTION OF LITERARY WORK. I HAVE A CHILD AND WHILE GOING THROUGH THE STANZAS ONE AFTER ANOTHER I JUST COULD'NT RESIST GOING TO THE NEXT STANZA WHICH REMINDED ME OF MY CHILDHOOD DAYS AND WHAT WOULD I HAVE BEEN AND NOW I CAN CORELATE THE SAME WITH MY CHILD . IN MY VIEW MR GIRISH VERMA HAS PUT UP AN ORIGINAL THOUGHT GIVEN A CHANCE I WOULD ALWAYS WANT TO MEET THE AMAZING POET WHO HAS GOT THE WONDERFUL ART OF PENNING DOWN HIS ORIGINAL THOUGHTS AND IDEAS. RAREST OF THE RARE WE FIND SOME WORK LIKE THIS. MR GIRISH VERMA HAS DONE A COMMENDABLE WORK AND I REQUEST HIM TO PLEASE KEEP UP THE ART OF WONDERFUL WRITING. THE BEAUTY OF THIS WORK CANNOT BE EXPRESSED IN WORDS AND IT WILL BE A MATTER OF IMMENSE HONOUR IF ONLY I COULD MEET YOU AND WHY ME ALONE I AM SURE WE ALL READERS WILL BE SOON HONOURED TO READ SOME MORE OF YOUR WORK.
HEARTIEST REGARDS .......

ASHISH SINHA

girishverma 11 years, 8 months ago

Re: बच्चों की मधुशाला

एक लम्बे अर्से बाद, हिन्दी साहित्य में, इतना प्रभावशाली काव्य पढ़ने मिला । मंत्र मुग्ध करने वाली रूबाईयों से सजी, इस काव्य-माला की कोई न कोई रूबाई हर पाठक के जीवन को स्पर्श करेगी । ‘‘बच्चों की मधुशाला’’ हर उस इन्सान को पसन्द आएगी जो बचपन से प्यार करता है, बच्चों से प्यार करता है, बच्चों की कामना करता है, नाती-पोतों की कामना करता है। इस काव्य-माला में किसी अच्छे जासूसी उपन्यास की तरह, शुरू से अन्त तक बांधे रखने की क्षमता है । आसान शब्दों में, बहुत सरल, गहरे अर्थो में डूबी, मन को छू लेने वाली रूबाईयां, सुखद एहसास कराती हैं । तेजी से फैल रहे अंग्रेजी के दायरे में, हिन्दी साहित्य के दबदबे को बनाए रखने, इस तरह के सरल और मनोरंजक साहित्य की अत्याधिक आवश्यकता है ।
-- डॉ मधुसूदन राय

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