Description
यह संग्रह एक प्रयास है सोच को संकीर्णता से निकालकर,
मनुष्यता की रोशनी तक पहुँचाने का।
संकीर्ण सोच से परे और अन्य कविताएँ केवल शब्दों का संग्रह नहीं है,
यह सोच का विस्तार है एक प्रयास है सीमित दृष्टिकोण से बाहर निकलने का। इन कविताओं में मैंने उस समाज को देखने की कोशिश की है,
जो आज भी वर्ग, लिंग, और विचारों की दीवारों में बँटा हुआ है।
इनमें माँ की ममता है, पिता का मौन तप, बचपन की सादगी है, और प्रकृति का दर्द भी। इस काव्य कृति का विमोचन माननीय कुलपति महोदया प्रोफेसर पूनम टण्डन जी ,DDU गोरखपुर विश्वविद्यालय के कर-कमलों द्वारा किया गया है।
गुलशन मौर्य, एक साधारण मध्यमवर्गीय परिवार से आने वाले युवा कवि हैं, जिनका जन्म 1 मई 2004 को ग्राम रजही, जनपद गोरखपुर (उत्तर प्रदेश) में हुआ। इनके पिता का नाम श्री रमेश मौर्य और माता का नाम श्रीमती संगीता देवी है। इनके एक बड़े भाई अभिषेक मौर्य और एक बड़ी बहन शालिनी मौर्य है। बचपन से ही संवेदनशील मन और गहरी सोच रखने वाले गुलशन ने समाज, परिवार और प्रकृति को बेहद करीब से महसूस किया है — यही उनकी कविताओं की आत्मा है।
प्रारंभिक शिक्षा गौतम बुद्ध इंटर कॉलेज दिव्यनगर से हुई, उसके बाद सेंट थरेसा हाई स्कूल, खोराबार से दसवीं कक्षा तक की पढ़ाई पूरी की। इंटरमीडिएट की शिक्षा महाराणा प्रताप इंटर कॉलेज, गोरखपुर से और स्नातक की पढ़ाई दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय से सम्पन्न की। वर्तमान में वे इसी विश्वविद्यालय से इतिहास विषय में एम.ए. (द्वितीय वर्ष) के विद्यार्थी हैं।
यह पुस्तक, “संकीर्ण सोच से परे और अन्य कविताएँ”, उनकी पहली काव्य-कृति है। इसमें उन्होंने समाज, गाँव का बचपन, पिता की मौन तपस्या, माँ की ममता, नारी चेतना और पर्यावरण जैसे विषयों को गहरी संवेदना और सादगी से उकेरा है।
गुलशन अपने विचारों और कविताओं को अपने यूट्यूब चैनल
@गुलशन_कोरा_काग़ज़
के माध्यम से भी साझा करते हैं, जहाँ वे शब्दों के जरिए दिलों को छूने की कोशिश करते हैं।
लेखक से सम्पर्क:-gulashanmaurya194@gmail.com
Youtube channel:-@गुलशन_कोरा_काग़ज़