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भारत में चुनावी राजनीति: सत्ता, अस्मिता और जनादेश

डॉ. अरविंद कुमार श्रीवास्तव
Type: Print Book
Genre: Literature & Fiction
Language: Hindi
Price: ₹309 + shipping
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Description

भारतीय लोकतंत्र की जटिल और बहुरंगी संरचना का सबसे जीवंत और गतिशील पक्ष उसकी चुनावी राजनीति है। यह न केवल शासन परिवर्तन की प्रक्रिया है, बल्कि भारतीय समाज की विविधता, सामाजिक संरचना, और राजनीतिक चेतना का दर्पण भी है। भारत जैसे विशाल और बहुस्तरीय देश में चुनाव केवल मतों की गणना नहीं होते, बल्कि यह जनभावनाओं, सामाजिक पहचानों, और सत्ता के समीकरणों के पुनर्संयोजन का उत्सव है। इसी विमर्श को केंद्र में रखते हुए प्रस्तुत पुस्तक "भारतीय चुनावी राजनीति: सत्ता, अस्मिता और जनादेश की राजनीति" भारतीय लोकतंत्र के इन जटिल आयामों का गहन विश्लेषण प्रस्तुत करती है।
स्वतंत्रता के बाद से भारतीय राजनीति में सत्ता का स्वरूप निरंतर परिवर्तित हुआ है। प्रारंभिक दशकों में जहाँ कांग्रेस का प्रभुत्व था, वहीं बाद के वर्षों में क्षेत्रीय दलों, जातीय समीकरणों, और सामाजिक आंदोलनों ने राजनीतिक परिदृश्य को नए सिरे से गढ़ा। सत्ता का यह विकेंद्रीकरण लोकतंत्र के गहराने का प्रतीक भी है और अस्मिता-आधारित राजनीति के उद्भव का कारण भी। इस पुस्तक में यह विश्लेषण किया गया है कि किस प्रकार जाति, धर्म, भाषा, क्षेत्र और वर्ग जैसे सामाजिक तत्वों ने भारतीय चुनावों में निर्णायक भूमिका निभाई है। आधुनिक दौर में भारतीय चुनावी राजनीति केवल विचारधारा या नीति-निर्धारण तक सीमित नहीं रही है। यह अब अस्मिता , प्रतिनिधित्व और जनसंपर्क की राजनीति बन चुकी है। नेता और दल केवल वादों के आधार पर नहीं, बल्कि प्रतीक, छवि और मीडिया-प्रबंधन के सहारे भी जनादेश प्राप्त करने का प्रयास करते हैं। इस पुस्तक में यह विमर्श प्रस्तुत है कि किस प्रकार सत्ता प्राप्ति के लिए राजनीतिक दलों ने सामाजिक पहचानों को न केवल अपनाया, बल्कि उन्हें अपने चुनावी अभियान का मूल आधार बनाया। इसके अतिरिक्त, पुस्तक में चुनाव आयोग की भूमिका, निर्वाचन सुधारों की आवश्यकता, और लोकतांत्रिक नैतिकता के प्रश्नों पर भी विचार किया गया है। 21वीं सदी में तकनीक, सोशल मीडिया और जनसंचार माध्यमों ने चुनावी राजनीति को जिस प्रकार प्रभावित किया है, वह भी इस अध्ययन का महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह पुस्तक न केवल राजनीतिक शास्त्र के विद्यार्थियों और शोधार्थियों के लिए उपयोगी है, बल्कि उन सभी पाठकों के लिए भी महत्वपूर्ण है जो भारतीय लोकतंत्र के जीवंत स्वरूप को समझना चाहते हैं। इसमें प्रस्तुत विश्लेषण भारतीय समाज और राजनीति के गहरे अंतर्संबंधों को उजागर करता है -जहाँ सत्ता की आकांक्षा और सामाजिक अस्मिता एक-दूसरे से गुंथी हुई हैं।

About the Author

उत्तर प्रदेश के अमेठी जिले के ग्राम पहाड़गंज में जन्मे डॉ० अरविंद कुमार श्रीवास्तव एक सरल सहज व्यक्तित्व के धनी लोकप्रिय शिक्षक हैं , जो उच्च शिक्षण संस्थान में 20 वर्ष से भी अधिक समय से विभिन्न पदों पर कार्यरत रहे हैं । आपने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से 1995 में स्नातक और 1997 में परास्नातक की पढ़ाई पूरी करते हुए वर्ष 1999 में यूजीसी की नेट परीक्षा उत्तीर्ण की। इसके बाद हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल केन्द्रीय विश्वविद्यालय उत्तराखंड से शोधकार्य पूर्ण कर आपने डाक्टरेट की डिग्री प्राप्त की।

आपका अध्यापन कैरियर वर्ष 2000 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय इलाहाबाद के संघटक कॉलेज 'ईश्वर शरण डिग्री कॉलेज' की सांध्य कालीन कक्षाओं से प्रारंभ हुआ और पिछले 24 वर्षों से आप विभिन्न संस्थाओं में अध्यापन कार्य करते रहे हैं।

सम्प्रति, आप स्थायी रूप से उत्तराखंड सरकार द्वारा अनुदानित महाविद्यालय धनौरी पी० जी० कालेज धनौरी हरिद्वार (श्री देव सुमन उत्तराखंड विश्वविद्यालय टिहरी गढ़वाल) में राजनीति विज्ञान विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष के रूप में कार्यरत हैं। 'किताब महल' इलाहाबाद द्वारा प्रकाशित आपकी पुस्तक "भारत के राष्ट्रपति और उनका नेतृत्व" काफी चर्चित रही है। नालंदा प्रकाशन दिल्ली द्वारा प्रकाशित "विकसित भारत- मुद्दे चुनौतियां और अवसर" आपके द्वारा संपादित प्रथम पुस्तक है। इसके अतिरिक्त विभिन्न शोध पत्र पत्रिकाओं में आपके 12 से अधिक शोध-पत्र और संपादित पुस्तकों में 4 बुक चैप्टर प्रकाशित हो चुके हैं। इसके अतिरिक्त आपने 25 से अधिक राष्ट्रीय/अन्तर्राष्ट्रीय सेमिनारों में प्रतिभाग करते हुए आपने शोध-पत्र प्रस्तुत किए हैं और कई शैक्षणिक कार्यशालाओं का आयोजन और प्रतिभाग किया है।

लेखक: डॉ. अरविंद कुमार श्रीवास्तव

Book Details

ISBN: 9788199540385
Publisher: Sjain Publication
Number of Pages: 114
Dimensions: 5.5"x8.5"
Interior Pages: B&W
Binding: Paperback (Perfect Binding)
Availability: In Stock (Print on Demand)

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