You can access the distribution details by navigating to My Print Books(POD) > Distribution
भारतीय लोकतंत्र की जटिल और बहुरंगी संरचना का सबसे जीवंत और गतिशील पक्ष उसकी चुनावी राजनीति है। यह न केवल शासन परिवर्तन की प्रक्रिया है, बल्कि भारतीय समाज की विविधता, सामाजिक संरचना, और राजनीतिक चेतना का दर्पण भी है। भारत जैसे विशाल और बहुस्तरीय देश में चुनाव केवल मतों की गणना नहीं होते, बल्कि यह जनभावनाओं, सामाजिक पहचानों, और सत्ता के समीकरणों के पुनर्संयोजन का उत्सव है। इसी विमर्श को केंद्र में रखते हुए प्रस्तुत पुस्तक "भारतीय चुनावी राजनीति: सत्ता, अस्मिता और जनादेश की राजनीति" भारतीय लोकतंत्र के इन जटिल आयामों का गहन विश्लेषण प्रस्तुत करती है।
स्वतंत्रता के बाद से भारतीय राजनीति में सत्ता का स्वरूप निरंतर परिवर्तित हुआ है। प्रारंभिक दशकों में जहाँ कांग्रेस का प्रभुत्व था, वहीं बाद के वर्षों में क्षेत्रीय दलों, जातीय समीकरणों, और सामाजिक आंदोलनों ने राजनीतिक परिदृश्य को नए सिरे से गढ़ा। सत्ता का यह विकेंद्रीकरण लोकतंत्र के गहराने का प्रतीक भी है और अस्मिता-आधारित राजनीति के उद्भव का कारण भी। इस पुस्तक में यह विश्लेषण किया गया है कि किस प्रकार जाति, धर्म, भाषा, क्षेत्र और वर्ग जैसे सामाजिक तत्वों ने भारतीय चुनावों में निर्णायक भूमिका निभाई है। आधुनिक दौर में भारतीय चुनावी राजनीति केवल विचारधारा या नीति-निर्धारण तक सीमित नहीं रही है। यह अब अस्मिता , प्रतिनिधित्व और जनसंपर्क की राजनीति बन चुकी है। नेता और दल केवल वादों के आधार पर नहीं, बल्कि प्रतीक, छवि और मीडिया-प्रबंधन के सहारे भी जनादेश प्राप्त करने का प्रयास करते हैं। इस पुस्तक में यह विमर्श प्रस्तुत है कि किस प्रकार सत्ता प्राप्ति के लिए राजनीतिक दलों ने सामाजिक पहचानों को न केवल अपनाया, बल्कि उन्हें अपने चुनावी अभियान का मूल आधार बनाया। इसके अतिरिक्त, पुस्तक में चुनाव आयोग की भूमिका, निर्वाचन सुधारों की आवश्यकता, और लोकतांत्रिक नैतिकता के प्रश्नों पर भी विचार किया गया है। 21वीं सदी में तकनीक, सोशल मीडिया और जनसंचार माध्यमों ने चुनावी राजनीति को जिस प्रकार प्रभावित किया है, वह भी इस अध्ययन का महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह पुस्तक न केवल राजनीतिक शास्त्र के विद्यार्थियों और शोधार्थियों के लिए उपयोगी है, बल्कि उन सभी पाठकों के लिए भी महत्वपूर्ण है जो भारतीय लोकतंत्र के जीवंत स्वरूप को समझना चाहते हैं। इसमें प्रस्तुत विश्लेषण भारतीय समाज और राजनीति के गहरे अंतर्संबंधों को उजागर करता है -जहाँ सत्ता की आकांक्षा और सामाजिक अस्मिता एक-दूसरे से गुंथी हुई हैं।
Currently there are no reviews available for this book.
Be the first one to write a review for the book भारत में चुनावी राजनीति: सत्ता, अस्मिता और जनादेश.