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बालमन स्वभाव से ही सरल व चंचल होता है। छोटी-छोटी बातों में ही कभी प्रसन्न तो कभी रूठ जाता है। उलाहना देना तो बच्चों का जन्मसिद्ध अधिकार है। वो इसका प्रयोग बखूबी करते भी हैं। बच्चों के इस तरह रूठने, मनाने, उलाहना देने और छोटी-सी बातों में ही खुश हो जाने के विभिन्न भावों को मैंने कुछ कविताओं के माध्यम से अभिव्यक्त किया है।
मेरा मानना है कि बच्चों का मन कोरा कागज़ होता है। उन्हें हमारी संस्कृति और संस्कार के विषय में जो भी इस समय सिखाया जा सकता है, वह आयु के किसी और पड़ाव पर सिखाना सम्भव नहीं है। हमें इसी आयु में ही नैतिकता के बीज उनके कोमल मानस पटल में बो देने चाहिए। यह महत्त्वपूर्ण कार्य कड़े अनुशासन के स्थान पर कविताओं व कहानियों के माध्यम से रुचिकर बनाकर करना चाहिए।
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