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आज की वैश्विक दुनिया निरंतर परिवर्तित होती पर्यावरणीय, सामाजिक और आर्थिक परिस्थितियों से गुजर रही है। जलवायु परिवर्तन, शहरीकरण, प्राकृतिक आपदाएँ, संसाधनों का क्षरण, और सांस्कृतिक विविधता जैसे मुद्दे न केवल हमारी आजीविका को प्रभावित करते हैं, बल्कि पृथ्वी के भौगोलिक स्वरूप और मानवीय गतिविधियों के बीच संबंधों को भी नए संदर्भ प्रदान करते हैं। ऐसे परिप्रेक्ष्य में समसामयिक भूगोल का अध्ययन अत्यंत आवश्यक एवं प्रासंगिक हो जाता है, क्योंकि यह वर्तमान समय में घटित हो रही भौगोलिक घटनाओं, प्रवृत्तियों और उनके प्रभावों का विश्लेषण करता है।
वर्तमान पुस्तक "समसामयिक भूगोल" का उद्देश्य पाठकों को उन विविध और जटिल भौगोलिक विषयों से परिचित कराना है, जो आज की वैश्विक और स्थानीय समस्याओं के मूल में विद्यमान हैं। यह पुस्तक समसामयिक भूगोल को केवल एक शैक्षणिक अनुशासन के रूप में नहीं, बल्कि एक जीवंत, समस्यामूलक और समाधानोन्मुख अध्ययन क्षेत्र के रूप में प्रस्तुत करती है।
पुस्तक के अध्यायों में समुद्र-स्तर में वृद्धि के कारण तटीय भू-आकृतिक परिवर्तनों की पड़ताल की गई है, जो विशेषकर भारत जैसे समुद्र-तटीय देशों के लिए एक गंभीर चुनौती बन चुके हैं। वहीं प्रशांत अग्नि-पट्टी में ज्वालामुखीय गतिविधियों का विश्लेषण करते हुए मृदा उर्वरता पर उनके प्रभाव को समझने का प्रयास किया गया है।
शहरीकरण की बढ़ती प्रवृत्तियाँ, विशेषकर विकासशील देशों में, न केवल भौगोलिक परिदृश्य को परिवर्तित कर रही हैं, बल्कि सामाजिक व आर्थिक संरचनाओं को भी पुनर्परिभाषित कर रही हैं। भारत के महानगरों में प्रवासन पैटर्न एवं शहरी अवसंरचना पर उसके प्रभाव, और उत्तर-पूर्व भारत की आदिवासी बस्तियों के सांस्कृतिक परिदृश्य एवं पहचान जैसे अध्याय इस विषय की गहराई को रेखांकित करते हैं।
पश्चिमी घाट जैसे पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र में वनों की कटाई और जैव विविधता पर इसके प्रभाव, तथा अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में जलवायु परिवर्तन के कारण कृषि उत्पादकता में आ रही गिरावट जैसे अध्याय पर्यावरणीय भूगोल की समसामयिक चिंता को उजागर करते हैं।
तकनीकी नवाचारों की भूमिका को रेखांकित करते हुए पुस्तक में आपदा जोखिम मूल्यांकन एवं प्रबंधन में ड्रोन तकनीक के उपयोग पर भी एक अध्याय शामिल है, जो भूगोल के व्यावहारिक पक्ष को रेखांकित करता है। ब्रह्मपुत्र बेसिन में बाढ़ जोखिम मानचित्रण एवं शमन रणनीतियाँ तथा उष्ण तापमान वृद्धि के संदर्भ में शहरी लचीलापन एवं जलवायु अनुकूलन की रणनीतियाँ, वर्तमान जलवायु संकट से निपटने हेतु वैज्ञानिक सोच और नीतिगत दृष्टिकोण को प्रस्तुत करती हैं।
इस पुस्तक की भाषा सरल, विषयवस्तु शोधपरक और दृष्टिकोण बहुआयामी है, जिससे यह छात्रों, शोधार्थियों, शिक्षकों एवं नीति-निर्माताओं के लिए समान रूप से उपयोगी सिद्ध होगी।
"समसामयिक भूगोल" केवल एक विषय नहीं, बल्कि बदलते यथार्थ को समझने का एक उपकरण है — जो हमें अपने पर्यावरण, समाज और भविष्य के प्रति अधिक सजग और संवेदनशील बनाता है।
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