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साहित्य आत्मा की भाषा है, और कविता उस आत्मा की अभिव्यक्ति, जो भावों से जनमती है, संवेदनाओं में पलती है, और शब्दों के पंख लगाकर पाठकों के हृदय तक पहुँचती है। इसी भावप्रवाह का सहज, संक्षिप्त और सशक्त रूप है — भक्त राज ध्रुव!
भक्त राज ध्रुव प्रस्तुत करते हुए मुझे अपार हर्ष की अनुभूति हो रही है। यह संग्रह मेरे अंतर्मन की उन अनुभूतियों का प्रतिफल है, जो जीवन की विविध परिस्थितियों, सामाजिक सरोकारों, आध्यात्मिक दृष्टिकोणों, नारी चेतना और राष्ट्र प्रेम जैसे विषयों को समेटे हुए हैं। प्रत्येक मुक्तक स्वतंत्र होते हुए भी किसी न किसी गहन विचार या अनुभूति को पाठकों के मन में सँजो देता है।
मुक्तक लेखन मेरे लिए केवल रचना नहीं, एक साधना है—आत्मनिरीक्षण और आत्मप्रकाशन की यात्रा। शब्दों की यह माला जब मन के मोतियों से जुड़ती है, तो एक ऐसी भावनात्मक संपदा बन जाती है, जो पाठकों को भीतर तक स्पर्श कर सके—यही मेरी लेखनी का उद्देश्य रहा है।
इस संग्रह में आपने जिन भावों को पाया है, वे आपके अपने हैं — कभी जीवन के झंझावातों में सहारा देने वाले, कभी मुस्कान की वजह बनने वाले, और कभी किसी अनकहे एहसास को स्वर देने वाले।
मैं उन सभी पाठकों, समीक्षकों और सृजन-प्रेमियों के प्रति आभार प्रकट करती हूँ, जो साहित्य को जीवन की आवश्यकता मानते हैं और उसे अपनी आत्मा से जोड़ते हैं। यदि इस संग्रह का कोई मुक्तक आपके मन की गहराइयों में उतर सके, तो मेरा यह प्रयास सफल माना जाएगा।
आप सभी का स्नेह, सहयोग और मार्गदर्शन सदैव मेरी लेखनी की शक्ति बना रहे — इसी कामना के साथ...
– डॉ. गीता पाण्डेय 'अपराजिता'
वरिष्ठ हिंदी प्रवक्ता, उपप्रधानाचार्य
कान्ह शिक्षा निकेतन इंटर कॉलेज, रायबरेली
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