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“जय बोलो घरवाली की” डॉ. चंद्रदत्त शर्मा ‘चंद्रकवि’ द्वारा रचित एक व्यंग्य संग्रह है, जो घरेलू जीवन, पति-पत्नी के रिश्तों, समाज की विसंगतियों और आम इंसान की मानसिकताओं पर हल्के-फुल्के अंदाज़ में गहरी चोट करता है।
यह पुस्तक केवल हँसाती ही नहीं, बल्कि सोचने पर भी विवश करती है। इसमें घरेलू नोक-झोंक, पति-पत्नी के मीठे झगड़े, समाज की कटु सच्चाइयाँ और जीवन के हास्यास्पद पहलुओं को बड़ी सहजता और चुटीलेपन से प्रस्तुत किया गया है।
लेखक ने हरियाणवी बोलचाल की मिठास और हिन्दी की कोमलता को जोड़कर ऐसा अनूठा व्यंग्य संसार रचा है, जिसमें पाठक हँसते-हँसते खुद को और अपने समाज को पहचानने लगते हैं।
“जय बोलो घरवाली की” केवल हास्य नहीं — यह जीवन का एक दर्शन है, जो बताता है कि मुस्कुराते हुए सच्चाई कहना ही व्यंग्य का सबसे सुंदर रूप है।
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