You can access the distribution details by navigating to My Print Books(POD) > Distribution
किसी भी देश की उन्नति उसकी संस्कृति, उसकी भाषा, उसके स्वाभिमान और उसके जागरूक लोगों के आधार पर होती है। जिस देश के नागरिक अपनी भाषा और संस्कृति का मान सम्मान रखते हैं, वह उस देश को भी ऊंचा उठाने की कोशिश करते हैं जिसमें वे रहते हैं, जिसको जन्मभूमि मानते हैं। संस्कृति और सभ्यता की रक्षा के लिए उस क्षेत्र की मूलभाषा, बोली का विशेष महत्व है।
आंचलिक भाषा, बोलियों में जो शब्दावली होती है वह अपने आप में पूर्ण होती है और वह प्राचीन संस्कृति की परिचायक होती है जिसे हम छोड़ते जा रहे हैं या भूलते जा रहे हैं।
बोली के माध्यम से हम उन चीजों का जिक्र करते हैं जो हमसे दूर होती जा रही हैं लेकिन कहीं ना कहीं उसके शब्दकोश में वह समाहित जरूर हैं।
आज बुजुर्ग लोग जितने भी बचे हुए हैं वे कहीं ना कहीं अपनी पुरानी परंपरागत वस्तुओं का जिक्र करते हैं अपनी बोली के माध्यम से प्रकट करते हैं।
हरियाणवी भी एक ऐसी ही सशक्त बोली है जो अपने आप सफल है और इसकी विशेषता यह है कि यह स्पष्ट एवं परम्परा युक्त है। हरियाणवी संस्कृति से जुड़ी हुई है।
छोटी से छोटी वस्तु और बड़ी से बड़ी वस्तु रीति रिवाज, विवाह उत्सव और हमारे जो कुटीर उद्योग उन सबकी व्याख्या करती है ।यह हमारी हरियाणवी बोली है इसे हम प्यार से मां बोली भी कहते हैं। इसको भाषा का दर्जा दिलाने के लिए न जाने कितने साहित्यकार ने योगदान दिया है।
हमारा भी एक छोटा सा प्रयास है जो साझा संग्रह और एकल काव्य संग्रह, लघुकथा आदि के द्वारा किया जा रहा है।
धतूरा हरियाणवी लघुकविताओं का मेरा संग्रह है।इसमें "धतूरा" शब्द इसलिए प्रयोग किया गया है क्योंकि धतूरा दूर से देखने पर कांटेदार, एक अनगढ़ सा पौधा होता है जो गर्मी में भी हरा भरा रहता है ,इतना ही नहीं वह एक औषधीय पौधा है। लोग इसे जंगली पौधा मानते हैं लेकिन यह एक बहुत ही गुणकारी पौधा होता है। इसका सुंदर फूल मन को लुभाता है।
धतूरे को मैं हरियाणवी मनुष्य का प्रतीक मानता हूं जो बाहर से थोड़ा अक्खड़ अंदर से गुणकारी होता है। सदा धतूरे की तरह हरा भरा प्रसन्नचित रहता है। लोग उसे ज्यादा भद्र नहीं मानते, परन्तु यह भ्रम है।
धतूरा हरियाणवी लघुकविता संग्रह हरियाणवी संस्कृति की झलक है।
इस काव्यकृति में हरियाणवी वस्तुओं की व्याख्या और स्मृति चिह्न है जो हरियाणवी संस्कृति से धीरे-धीरे लुप्त हो गई हैं।
आइए ऐसी ही कृतियों की निधि को संभालकर सहेजकर रखे। यह पुस्तक अपने आप में अनुपम है, प्रेरणा स्रोत है। आशा करता हूं कि आप पढ़कर हरियाणवी संस्कृति और सभ्यता से पूर्ण परिचिय होंगे।
आपका मित्र
डॉ चंद्रदत्त शर्मा चंद्रकवि रोहतक
हिन्दी प्रवक्ता।
अध्यक्ष:
शैली साहित्यिक मंच रोहतक।
Currently there are no reviews available for this book.
Be the first one to write a review for the book धतूरा (हरियाणवी लघुकविता संग्रह).