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बिहार का इतिहास: कला और संस्कृति

डॉ. जनक नन्दनी
Type: Print Book
Genre: Social Science
Language: Hindi
Price: ₹480 + shipping
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Description

यह पुस्तक मात्र अक्षरों का एक साधारण संकलन नहीं, बल्कि बिहार के उस गौरवशाली और अद्वितीय इतिहास की जीवंत आत्मा की प्रतिध्वनि है, जिसने सदियों से केवल भारत ही नहीं, अपितु पूरे विश्व की सभ्यताओं को ज्ञान, दर्शन और जीवन-मूल्यों की अभूतपूर्व दिशा प्रदान की है। यह केवल एक तथ्यात्मक विवरण नहीं, अपितु उसकी अतुलनीय कला-संस्कृति की एक भावपूर्ण, गहन और हृदयस्पर्शी यात्रा है, जिसे पाठक हर पृष्ठ पर न केवल पढ़ते हैं, बल्कि शिद्दत से महसूस भी कर सकते हैं – एक ऐसी अलौकिक यात्रा जो पाठकों को बिहार की उस पवित्र मिट्टी की गहराइयों से जोड़ती है जहाँ से लोकतंत्र, आध्यात्मिकता और मानवता की पहली किरणें फूटी थीं। यह पुस्तक उन सभी बिहारवासियों को एक हार्दिक और विनम्र समर्पण है, जिन्होंने कठोर तपस्या, निस्वार्थ भाव और अथक प्रयासों से अपनी इस अमूल्य विरासत – चाहे वह ज्ञान की चिरंतन धारा हो, कला का सृजनात्मक वैभव हो, या जीवन-मूल्यों की सशक्त नींव हो – को न केवल पीढ़ी-दर-पीढ़ी दृढ़ता से संरक्षित रखा है, बल्कि उसे जीवंत, समृद्ध और निरंतर विकसित भी बनाए रखा है।
यह पुस्तक मात्र कागज़ पर छपी स्याही नहीं, बल्कि उन लाखों अनसुने नायकों का एक विनम्र अभिनन्दन है, जिन्होंने कभी प्रसिद्धि या यश की कामना नहीं की, पर अपने कर्मों, अपनी निष्ठा और अपने अटूट प्रेम से बिहार के शाश्वत स्वरूप को अमर कर दिया। इनमें वे कलाकार शामिल हैं जिन्होंने अपनी कला को मात्र एक हुनर नहीं, बल्कि अपनी साधना माना और रंगों तथा तुलिकाओं के माध्यम से जीवन की गहराइयों को कैनवास पर उतारा; वे शिल्पकार जिनके हाथों ने निर्जीव पत्थर और मिट्टी में अद्भुत जान फूँक कर उन्हें सजीव कलाकृतियों में बदल दिया; वे लोक गायक जिनकी आवाज़ में बिहार की मिट्टी की सोंधी सुगंध और आत्मा बसती है, जो अपनी धुनें और लोककथाएँ पीढ़ी-दर-पीढ़ी सुनाते रहे; वे कथाकार जिन्होंने मौखिक परंपराओं और कहानियों के माध्यम से पुरखों के इतिहास को जीवंत रखा, स्मृति के धागों से बुनकर; वे शिक्षक जिन्होंने ज्ञान की लौ जलाकर अज्ञानता के अंधकार को दूर किया और अनगिनत पीढ़ियों को सही मार्ग दिखाया; वे गृहणियां जिन्होंने संस्कारों और परंपराओं की नींव को घर-घर में सींचा, परिवार और समाज को सांस्कृतिक रूप से सुदृढ़ बनाया; और वे सामान्य जनजीवन के लोग जिन्होंने अपने दैनिक जीवन के प्रत्येक पल में बिहार के सार को अपने हृदय में संजोए रखा है, उसे अपनी रग-रग में महसूस किया है, और अपनी जीवनशैली का अभिन्न अंग बना लिया है। चाहे वह मिथिला की सजीव दीवारों पर पीढ़ियों से, अपनी आत्मा के रंगों से, उकेरी गई मधुबनी की मनमोहक छटा हो, जो आज अपनी अद्वितीय सौंदर्य और कलात्मकता के लिए विश्व भर में अपनी पहचान बना चुकी है – रंगों और आकृतियों का एक अद्भुत संगम; गंगा के पावन घाटों पर आस्था और श्रद्धा से गूँजते छठ मैया के अलौकिक और पवित्र लोकगीत हों, जो सूर्य देव को अर्घ्य देकर प्रकृति और जीवन के प्रति अटूट विश्वास, सात्विकता और सामूहिक चेतना का प्रतीक हैं; मगध की धरती पर पल्लवित और पुष्पित हुए नालंदा और विक्रमशिला जैसे प्राचीन विश्वविद्यालयों से प्रवाहित ज्ञान की अविरल धारा हो, जिसने पूरे विश्व को आलोकित कर उसे 'विश्वगुरु' का मार्ग दिखाया, जहाँ दूर-दूर से छात्र शिक्षा ग्रहण करने आते थे; या फिर भोजपुरी, मैथिली और मगही जैसी भाषाओं की नैसर्गिक मिठास और उनके भीतर समाया गहन साहित्य और लोक-रचनाएं हों, जो जीवन के हर रंग, हर अनुभव और हर मार्मिक क्षण को समेटे हुए हैं – इन सभी विरासतों को जीवंत और अक्षुण्ण रखने का श्रेय उन्हीं समर्पित बिहारवासियों को जाता है, जिन्होंने इन्हें मात्र एक विरासत नहीं, बल्कि अपनी पहचान, अपनी अस्मिता और अपने अस्तित्व का अभिन्न अंग माना है। यह सब साक्षात प्रमाण है उस अटूट और अविच्छिन्न बंधन का जो बिहार के लोगों का अपनी जड़ों, अपनी धरती और अपने इतिहास से है। वे इस विरासत के सजग प्रहरी बनकर खड़े रहे हैं। इन महानुभावों ने आधुनिकता की तेज़ दौड़ में, जिसके समक्ष कई पुरानी परंपराएं फीकी पड़ गईं, और कभी-कभी सरकारी या सामाजिक उपेक्षा के बावजूद भी, अपनी परम्पराओं को न केवल दृढ़ता से संरक्षित रखा है, बल्कि उन्हें अपने दैनिक जीवन का अभिन्न अंग बनाए रखा है। उन्होंने अपनी संस्कृति की गहरी छाप को पूजा-पाठ के विधानों में, उत्सवों के उल्लास में, घर की सादगीपूर्ण सजावट में, और पारंपरिक व्यंजनों व खानपान में भी कभी मिटने नहीं दिया, बल्कि उसे निरंतर पुष्ट किया। उन्होंने दादी-नानी की प्रेमिल कहानियों और लोक-कथाओं के माध्यम से अपने समृद्ध इतिहास और पुरखों के ज्ञान को मौखिक रूप से जीवंत रखा, जो आज भी बच्चों के मानस में गहरे उतरता है; अपने रंग-बिरंगे पर्वों और अनुष्ठानों के उल्लास और एकजुटता से संस्कृति को पोषित किया, उसे नई ऊर्जा प्रदान की; और अपने हाथों के पुश्तैनी हुनर तथा सृजनात्मकता से कला को नई दिशा दी, उसे नित नए आयाम प्रदान करते हुए समयानुकूल भी बनाया। यह पुस्तक उन सभी के प्रति अपनी हार्दिक और असीम कृतज्ञता व्यक्त करती है, जिन्होंने अपनी कला और संस्कृति को एक अद्वितीय पहचान, एक जीवंत आत्मा और एक अमर जीवन प्रदान किया है, जिससे वह आज वैश्विक पटल पर भी अपनी चमक बिखेर रही है। उन्हीं के अथक और अनवरत प्रयासों, उनकी अटूट निष्ठा और उनके गहरे प्रेम का यह परिणाम है कि बिहार की गौरवशाली मिट्टी आज भी अपने समृद्ध अतीत की गौरव-गाथा सुनाती है, और उसकी हर साँस में, उसके कण-कण में इतिहास की सुगंध महसूस की जा सकती है।
यह पुस्तक उन सभी के लिए है, जिन्होंने अपने निःस्वार्थ कर्मों, अपनी अटूट लगन और अपने पवित्र प्रेम से बिहार की अस्मिता को न केवल अक्षुण्ण बनाए रखा है, बल्कि उसे एक सार्वभौमिक पहचान भी दिलाई है, जिससे बिहार की विरासत आज विश्व भर में सम्मानित और अनुकरणीय बन गई है।

About the Author

डॉक्टर जनक नन्दनी, साहित्य और विचार जगत की एक अत्यंत सम्मानित हस्ती हैं, जिन्हें उनके गहन चिंतन और सशक्त लेखन के लिए जाना जाता है। अपने बहुआयामी लेखन के माध्यम से उन्होंने न केवल समाज को एक नई दृष्टि प्रदान की है, बल्कि विभिन्न सामाजिक मुद्दों पर सार्थक बहस को भी प्रेरित किया है, जिससे समाज को एक नई और प्रगतिशील दिशा मिली है। यह पुस्तक बिहार की समृद्ध कला और संस्कृति की अनमोल विरासत को भी सहेजती है, जो पाठकों को प्रदेश की गौरवशाली परंपराओं से परिचित कराती है और उनके महत्व को रेखांकित करती है। यह दर्शाती है कि कैसे सांस्कृतिक पहचान भी सशक्तिकरण का एक अभिन्न अंग हो सकती है।
वर्तमान में, डॉक्टर जनक नन्दनी रामचंद्र चंद्रवंशी विश्वविद्यालय में सहायक प्राध्यापक के पद पर कार्यरत हैं, जहाँ वे कला एवं मानविकी विभाग में अपनी बहुमूल्य सेवाएँ प्रदान कर रही हैं। यहाँ वे न केवल छात्राओं को अकादमिक शिक्षा प्रदान करती हैं, बल्कि एक मार्गदर्शक के रूप में उनके व्यक्तित्व विकास, करियर चयन और जीवन की चुनौतियों का सामना करने के लिए भी प्रेरित करती हैं। उनका उद्देश्य युवा पीढ़ी को ज्ञानवान, जिम्मेदार और संवेदनशील नागरिक बनाना है, जो समाज में सकारात्मक बदलाव ला सकें।

Book Details

ISBN: 9788199049925
Publisher: आर. सी. आई. टी.
Number of Pages: 287
Dimensions: A5
Interior Pages: B&W
Binding: Paperback (Perfect Binding)
Availability: In Stock (Print on Demand)

Ratings & Reviews

बिहार का इतिहास: कला और संस्कृति

बिहार का इतिहास: कला और संस्कृति

(5.00 out of 5)

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1 Customer Review

Showing 1 out of 1
Awinash Kumar 1 month, 3 weeks ago

Excellent

Very nice script and contents. This book is valuable for all the people.

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