You can access the distribution details by navigating to My Print Books(POD) > Distribution

Add a Review

हिन्दी कहानियों में मुस्लिम विमर्श

डॉ. निलोफर चौधरी
Type: Print Book
Genre: Literature & Fiction
Language: Hindi
Price: ₹309 + shipping
Price: ₹309 + shipping
Dispatched in 5-7 business days.
Shipping Time Extra

Description

भारतीय मुसलमानों की, सामाजिक, आर्थिक विसंगतियों का चित्रण करने वाली विशिष्ट कहानियों को ढूंढ़-खोजकर एक सुनियोजित ढंग से संकलित किया है । मुसलमानों के धार्मिक, सांस्कृतिक, आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक आदि विभिन्न जीवन आयामों को रोचकता पूर्वक उजागर करती हैं। भारतीय मुसलमानों के लिए एक अजीव स्थिति और परिस्थिति पैदा कर दी। स्वतन्त्रता के बाद मुस्लिम जीवन की विषमता, विपन्नता और विसंगतियों का हिन्दी कहानी के द्वारा बड़े ही सजीव एवं सुन्दर ढंग से वर्णन किया गया है।
हिन्दी कहानीकारों ने भी मुस्लिम जीवन के विविध पहलुओं को छूती हुई कहानियां प्रस्तुत की। इन कहानियों में मुस्लिम धार्मिक-विधान के अनुसार मुस्लिम जीवन की सभी समस्याओं- बहु-विवाह, रिश्ते-नाते, पर्दा-प्रथा, आर्थिक विपन्नता, मेहर, पर्व-त्यौहार आदि को कहानीकारों ने अपनी कहानियों का उपजीव्य बनाया। हिन्दी की कितनी ही कहानियाँ मुस्लिम नारी की असहाय और विषम दशा को लेकर लिखी गई हैं। आलोचना की कमी से निर्मित परिदृश्य की विवेचना करती है।
मुसलमानों के सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक स्तर को लेकर 'सरकारों के भेदभाव और उपेक्षा पूर्ण रवैये' की हकीकत नज़र अन्दाज होती है और न ही वे 'तालीम के अभाव में समुदाय में बेदारी न आ पाने' की बात को छोड़ते हैं और बेबाकी से कह उठते हैं कि 'मुसलमानों के हालात ठीक उस गौरैया की तरह है जो शीशे में अपना अक्स देख कर चोंच मारती रहती है। मजहबी मामलों में हमेशा मुखरता और मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड, शरीयत… आदि गैर जरूरी मुद्दों को तूल देना मुस्लिम समुदाय में अशिक्षा, अज्ञानता का ही परिचायक है।
मुसलमान आज तरक्की की रफ्तार में औरों की बनिस्पत काफी पिछड़ गये हैं। वह हर शोबे में पिछड़ा हुआ है मुल्क के अन्दर ही मुसलमानों की एक नई दुनिया बन गई है, जहां पसमांदा समाज है, जहालत है, गरीबी है, महरूमी है, बेबसी है और सिसकती आहें हैं और इन सब से पार पाने का कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा है। अब जरूरत इस बात की है कि मुसलमानों की तरक्की के लिए कुछ सकारात्मक कदम उठाये जायें जैसे कि हमने दलितों के लिए उठाये हैं। मुसलमानों के मामलों में हमें एक बड़ा पुश करना होगा। कुछ खास रियायतें देनी होंगी। कुछ खास कोशिशें करनी होंगी तब जाके सारा पसमंजर बदलेगा।
मुसलमानों की समाजी, मआशी, तालीमी, हालत सुधरेगी तो मुल्क की तरक्की भी बढ़ेगी क्योंकि एक बड़ी आबादी जब तक बाकी आबादी से कदम से कदम नहीं मिलायेगी तब तक मुल्क की तकदीर और तस्वीर नहीं बदल सकती। हां, एक अहम बात मुसलमानों को भी समझनी होगी कि उन्हें अपने माजी को भूल कर मुस्तकबिल की ओर देखना होगा क्योंकि, मातम से कौमों के मसले हल नहीं होते बल्कि खुद को भी अपना मुकद्दर बदलना होता है।
मुंशी प्रेमचन्द ही सम्भवतः हिन्दी के ऐसे प्रथम कहानी-कार हैं जिन्होंने सर्वप्रथम मुस्लिम धर्म, इतिहास, संस्कृति और जीवन के चित्रण को लक्ष्य बनाकर हिन्दी में दर्जनों कहानियां रची। स्थितियों ने मुस्लिम जीवन को बहुत प्रभावित और परिवर्तित किया । मुगल-मानों के सामन्तीय वर्ग से, अंग्रेजी राज्य में मध्यवर्ग बनने और उससे टूटकर निम्न मध्यवर्ग और निम्न वर्ग में परिवर्तित होने का ऐतिहासिक दस्तावेज यशपाल की परदा कहानी में देखने को मिलता है। टूटते हुए निम्न मध्यवर्गीय मुस्लिम अयोजित परिवार में अभाव और गरीबी का जो मुहर्रमी मातम छाया रहता है, जिसे परदे से ढका रखने की सभी कोशिशें बेकार होती हैं, उसे ही बेपर्दा किया गया है ।
दे खुदा की राह पर आचार्य चतुरसेन शास्त्री की कहानी मे बादशाहत गई, नवाबी गई, राजसी ठाठ गए । मुस्लिम राज-वर्ग तथा अन्य सम्बन्धित लोगों की हालत खस्ता होती गई । कितने ही राजवंशी दर-दर भटकने और भिखारी तक बनने को विवश हुए- मुस्लिम जीवन की इसी ऐतिहासिक यथार्थता का चित्रण है इस कहानी में मुर्गी की कीमत भीष्म साहनी की इस कहानी में एक कश्मीरी हतो की मेहनतकश, मजबूर मुफ़लिसी की जिन्दगी का बड़ा मार्मिक चित्रण हुआ है। सीजन-भर हड्डियाँ चटखाने पर भी अहमदू अपनी बीवी की एक फिरन की साघ पूरी करना तो दूर, छः आने की एक जिन्दा मुर्गी भी घर नहीं ला पाता।
काला बाप गोरा बाप महीपसिंह की कहानी में विवाह और तलाक के मसले के साथ-साथ इस कहानी में बदले हुए आयु-निक मुस्लिम जीवन की बह झलक है, जो पर्दे और बुर्के को त्यागकर फिल्मी दुनिया की स्वच्छन्दता और रंगीनी में रचबस गई है। कयामत आ गयी है मेहरुन्निसा परवेज की कहानी में दर-पर्वा-जिन्दगी की घुटन, ब्याह-शादी के पुराने रिवाजों ने मुस्लिम परिवारों में कुंवारी लड़कियों का जीवन बिडम्बनापूर्ण बना दिया है। इस कहानी में कुँआरी लड़कियों के पेट भरने की इसी कयामत के आगमन की चेतावनी है। अर्द्ध विराम नफ़ीस आफ़रीदी की कहानी एक मुस्लिम तांगेवाले की जिन्दगी का सच्चा खाका - मुफ़लिसी, प्रभाव, बहु-विवाह, सौतियाकलह, नारी की विवशता, मेहर, बाप की मजबूरी, मातृ संवेदन सजीव चित्रण है।
सारी तालीमात असगर वजाहत की इस कहानी में एक कारखानेदार हाजी जी द्वारा क़ौम के नाम पर मुसलमान कारीगरों और मजदूरों के शोषण का खाका पेश किया गया है। साथ ही मुस्लिम रहन-सहन, अभाव मुफलिसी चित्रित करती है । मकबरे का आदमी बदी उज्ज़माँ की कहानी में देश-विभाजन की कसक भारतीय मुसलमान भी महसूस करता है। अलताफ़ मामूं का इकलौता लड़का अफ़जल पाकिस्तान चला गया ! 'देखते-ही-देखते सबकुछ बदल गया ! एक-एक करके सब यहां से चले गए। मुल्क बंटा, खानदान बंटे ! जमींदारी खत्म हो गई !' बदली हुई परिस्थति की मुस्लिम संवेदना का चित्रण ! बाजार अफ़रोज शाहीन की कहानी में मुसलमानों की रोजमर्रा जिन्दगी- उनके गली-बाजारों के गंदे माहौल के कुछ छूट-पुट ऐसे चित्न इस कहानी में प्रकट किये गए हैं कि यह यथार्थता तिलमिला डालने वाली है, भाषा, भाव, पात्र, वातावरण सब सजीव !
तमाशा कहानी में हबीब कैफी ने अपने स्वार्थं में मनुष्य कितना अंधा और बेमुरब्बत हो जाता है, यह मरणासन्न ताया से अपने हिस्से का लाचल रखने वाला बेदर्द भाई और भाभी के चरित्र से प्रकट हुआ है। साथ ही मुस्लिम उत्तराधिकार क़ानून में नारी असहायावस्या का भी संकेत हुआ है। एक इन्द्रधनुषः (जुबेदा उर्फ़ जुब्बी के नाम) में सूर्यबाला ने एक बूढ़े उस्ताद कव्वाल की मार्मिक कहानी जिसने कभी रंगत-भरी शा में गुजारी थीं, पर जो अब पैसे-पैसे को मोहताज हो गया है उसका शागिर्द शब्बन भी कितना स्वार्थी निकला ! उस्ताद की साधे ससक्ती रह गई।
हत्या-आत्महत्या इस कहानी में सलाम बिन रजाक ने एक नौकरीपेशा निम्न मध्यवर्गीय मुस्लिम युवक की कशमकश विवशता, अभाव, आदर्श और मजदूरी का द्वन्द्व इस कहानी में सजीव हो उठा है। उसे मजबूरन अपने मालिकों के मनमाने कर्मचारी-विरोधी नोटिस पर हस्ताक्षर करके अपनी आत्मा की हत्या करनी पड़ती है। फैसले के बाद कहानी मे इब्राहीम शरीफ़ ने मुस्लिम अभाव-गरीबी की दर्दनाक दास्तान, चिश्ती खानदान की बहू राबिया अपनी परम्परागत खानदानी झूठी शान की परवाह न करके अपने बाल-बच्चों को पालने के लिए खेतों पर काम करने को, साहसपूर्वक पर्दा त्यागकर, निकल पड़ती है। सुबह होने का इन्तज़ार में कैलाश सेंगर ने सेक्सोफोन के उस्ताद अब्दुल की दर्दनाक कहानी। जिजीवीषा की यथार्थता, एक ओर है रोग, अभाव, गरीबी, बेकसी की सिसकती जिन्दगी। इससे छूट-कारा पाने को पास पड़ा एंड्रिन का डिब्बा। पर दूसरी तरफ है जीने की अदम्य लालसा, आाखिर जिजीवीषा विजयी होती है। लाखों-करोड़ों मुसल-मानों की यही निर्यात है-अभाव, उत्पीड़न, रोग-शोक, दरिद्रता में भी जीये जाने की नियति।

About the Author

.....

Book Details

ISBN: 9788198705297
Publisher: Sjain Publication
Number of Pages: 246
Dimensions: 5.50"x8.50"
Interior Pages: B&W
Binding: Paperback (Perfect Binding)
Availability: In Stock (Print on Demand)

Ratings & Reviews

हिन्दी कहानियों में मुस्लिम विमर्श

हिन्दी कहानियों में मुस्लिम विमर्श

(Not Available)

Review This Book

Write your thoughts about this book.

Currently there are no reviews available for this book.

Be the first one to write a review for the book हिन्दी कहानियों में मुस्लिम विमर्श.

Other Books in Literature & Fiction

Shop with confidence

Safe and secured checkout, payments powered by Razorpay. Pay with Credit/Debit Cards, Net Banking, Wallets, UPI or via bank account transfer and Cheque/DD. Payment Option FAQs.