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भारतीय साहित्य में भारतीय ज्ञान परंपरा

डॉ. प्रियंका सिंह
Type: Print Book
Genre: Religion & Spirituality, Education & Language
Language: Hindi
Price: ₹349 + shipping
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Description

भारतीय सभ्यता की परंपरा हजारों वर्षों से चली आ रही है, और इस दीर्घ कालखंड में विकसित हुई भारतीय ज्ञान परंपरा अपने आप में एक समृद्ध, जटिल तथा बहुआयामी संरचना है। इस परंपरा का मूल भारतीय मनीषा की उस चेतना में निहित है, जो जीवन, ब्रह्मांड, आत्मा, धर्म, समाज, नैतिकता, कला, भाषा और सृष्टि के रहस्यों की गहराई से पड़ताल करती है। ऋग्वेद से लेकर आधुनिक साहित्य तक, भारतीय ज्ञान परंपरा ने अनेक रूपों, विधाओं और संदर्भों में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है। इस पुस्तक "भारतीय साहित्य में भारतीय ज्ञान परंपरा" का उद्देश्य इन्हीं विविध आयामों को साहित्यिक दृष्टि से उद्घाटित करना है।

भारतीय साहित्य केवल रचनात्मक अभिव्यक्ति नहीं, अपितु ज्ञान की संवाहक शक्ति भी रहा है। वेदों, उपनिषदों, रामायण, महाभारत, पुराणों तथा नाट्यशास्त्र, कामसूत्र, अर्थशास्त्र जैसे ग्रंथों में निहित ज्ञान –धर्म, नीति, दर्शन, भौतिक विज्ञान, गणित, खगोल, आयुर्वेद, संगीत आदि के क्षेत्रों में–साहित्य के माध्यम से जनमानस तक पहुँचा। संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, हिंदी, तमिल, तेलुगु, कन्नड़, मलयालम, बंगला, उड़िया और अन्य भारतीय भाषाओं के साहित्य में यह परंपरा सतत रूप से विद्यमान रही है। भक्ति साहित्य में ज्ञान और अनुभव का संयोग, सूफी परंपरा में आत्म-चिंतन, संत साहित्य में लोक-आधारित बोध – यह सब भारतीय ज्ञान परंपरा के विविध रूप हैं।

यह पुस्तक इन तमाम परंपराओं की साहित्यिक उपस्थिति को खोजने का प्रयास है। इसमें विश्लेषित किया गया है कि किस प्रकार भारतीय ज्ञान परंपरा ने साहित्य को समृद्ध किया, और साहित्य ने इस ज्ञान को जनमानस तक पहुँचाने का कार्य किया। साथ ही, पुस्तक यह भी दर्शाने का प्रयास करती है कि आज के समय में भारतीय साहित्य की पुनः व्याख्या करते हुए किस प्रकार से भारतीय ज्ञान परंपरा को समझा और पुनर्परिभाषित किया जा सकता है।

पश्चिमी आलोचना पद्धतियों के प्रभाव के बावजूद, भारतीय साहित्य में अपने विशिष्ट आलोचनात्मक उपकरण रहे हैं – जैसे रस सिद्धांत, अलंकार शास्त्र, ध्वनि सिद्धांत, औचित्य और लोकदृष्टि। इन सिद्धांतों का संबंध केवल सौंदर्यबोध से नहीं, बल्कि ज्ञानबोध से भी है। यह पुस्तक इन पारंपरिक पद्धतियों की पुनर्प्रासंगिकता पर भी विचार करती है।

इस ग्रंथ में प्रयुक्त दृष्टिकोण न तो केवल पारंपरिक है और न ही केवल आधुनिक। यह एक संवादात्मक प्रयास है – भारतीय परंपरा और समकालीन सोच के मध्य। इस पुस्तक का उद्देश्य न केवल अतीत की ओर देखना है, बल्कि वर्तमान और भविष्य के लिए उस ज्ञान की उपयोगिता को भी उजागर करना है जो भारतीय साहित्य के माध्यम से हमें प्राप्त हुआ है।

हमें आशा है कि यह पुस्तक विद्यार्थियों, शोधार्थियों, शिक्षकों तथा भारतीय साहित्य और संस्कृति में रुचि रखने वाले पाठकों के लिए उपयोगी सिद्ध होगी।

About the Author

प्रियंका समकालीन हिंदी साहित्य की एक जागरूक, संवेदनशील और विचारशील लेखिका हैं, जिनकी लेखनी में स्त्री दृष्टिकोण, समाज का गहन अवलोकन और जीवन के विविध आयामों की रचनात्मक अभिव्यक्ति देखने को मिलती है। उनकी भाषा में जहाँ एक ओर सरलता और प्रवाह है, वहीं दूसरी ओर विचारों की गहराई और भावों की गंभीरता भी है। हिंदी साहित्य की परंपरा में वे एक ऐसे स्वर की तरह उभरती हैं, जो न केवल अपनी अस्मिता को पहचानती है, बल्कि उसे रचनात्मक रूप में अभिव्यक्त करने का साहस भी रखती है। प्रियंका का शैक्षणिक और वैचारिक धरातल उन्हें साहित्यिक चेतना से जोड़ता है। उन्होंने आधुनिक हिंदी साहित्य, स्त्री विमर्श, सामाजिक प्रश्नों और सांस्कृतिक अंतर्दृष्टि के क्षेत्रों में विशेष अध्ययन किया है। वे मानती हैं कि साहित्य केवल मनोरंजन का माध्यम नहीं, बल्कि समाज का दर्पण और परिवर्तन का साधन है। उनके लेखन में यह दृष्टिकोण स्पष्ट रूप से परिलक्षित होता है। चाहे वह कथा हो, निबंध हो, या आलोचनात्मक लेख — प्रियंका का प्रत्येक शब्द एक विचार की तरह पाठक से संवाद करता है।

प्रियंका का लेखन भारतीय नारी के बदलते हुए यथार्थ को चित्रित करता है। वे नारी को केवल करुणा और सहानुभूति का पात्र न बनाकर, उसे एक विचारशील, सक्रिय और आत्मनिर्भर इकाई के रूप में प्रस्तुत करती हैं। उनका लेखन भाषा की सजगता और विचार की सघनता का संतुलित उदाहरण है। वे भारतीय सामाजिक संरचना में मौजूद विडंबनाओं और विसंगतियों को गहरे संवेदनात्मक और वैचारिक दृष्टिकोण से उजागर करती हैं।

उनकी रचनाओं में भावनाओं की कोमलता और यथार्थ की तीव्रता दोनों का अद्भुत समन्वय देखने को मिलता है। उन्होंने साहित्य को महज लेखन की प्रक्रिया न मानते हुए उसे आत्म-अभिव्यक्ति और सामाजिक उत्तरदायित्व का माध्यम माना है। यही कारण है कि उनके लेखन में केवल विचार नहीं, संवेदना भी है; केवल कथ्य नहीं, दृष्टिकोण भी है।

प्रियंका नई पीढ़ी की उन लेखिकाओं में से हैं जो अपनी परंपरा से जुड़ी हुई हैं, परंतु अपने समय की धड़कनों को भी उतनी ही सजगता से महसूस करती हैं। वे अपने लेखन के माध्यम से न केवल साहित्यिक संवाद स्थापित करती हैं, बल्कि समाज से एक जीवंत संवाद भी रचती हैं। उनके शब्दों में एक स्त्री की आवाज़ है—जो न केवल सुनी जानी चाहिए, बल्कि समझी भी जानी चाहिए।

Book Details

ISBN: 9788198779113
Publisher: Sjain Publication
Number of Pages: 203
Dimensions: 5.5"x8.5"
Interior Pages: B&W
Binding: Paperback (Perfect Binding)
Availability: In Stock (Print on Demand)

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