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भारतीय सभ्यता की परंपरा हजारों वर्षों से चली आ रही है, और इस दीर्घ कालखंड में विकसित हुई भारतीय ज्ञान परंपरा अपने आप में एक समृद्ध, जटिल तथा बहुआयामी संरचना है। इस परंपरा का मूल भारतीय मनीषा की उस चेतना में निहित है, जो जीवन, ब्रह्मांड, आत्मा, धर्म, समाज, नैतिकता, कला, भाषा और सृष्टि के रहस्यों की गहराई से पड़ताल करती है। ऋग्वेद से लेकर आधुनिक साहित्य तक, भारतीय ज्ञान परंपरा ने अनेक रूपों, विधाओं और संदर्भों में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है। इस पुस्तक "भारतीय साहित्य में भारतीय ज्ञान परंपरा" का उद्देश्य इन्हीं विविध आयामों को साहित्यिक दृष्टि से उद्घाटित करना है।
भारतीय साहित्य केवल रचनात्मक अभिव्यक्ति नहीं, अपितु ज्ञान की संवाहक शक्ति भी रहा है। वेदों, उपनिषदों, रामायण, महाभारत, पुराणों तथा नाट्यशास्त्र, कामसूत्र, अर्थशास्त्र जैसे ग्रंथों में निहित ज्ञान –धर्म, नीति, दर्शन, भौतिक विज्ञान, गणित, खगोल, आयुर्वेद, संगीत आदि के क्षेत्रों में–साहित्य के माध्यम से जनमानस तक पहुँचा। संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, हिंदी, तमिल, तेलुगु, कन्नड़, मलयालम, बंगला, उड़िया और अन्य भारतीय भाषाओं के साहित्य में यह परंपरा सतत रूप से विद्यमान रही है। भक्ति साहित्य में ज्ञान और अनुभव का संयोग, सूफी परंपरा में आत्म-चिंतन, संत साहित्य में लोक-आधारित बोध – यह सब भारतीय ज्ञान परंपरा के विविध रूप हैं।
यह पुस्तक इन तमाम परंपराओं की साहित्यिक उपस्थिति को खोजने का प्रयास है। इसमें विश्लेषित किया गया है कि किस प्रकार भारतीय ज्ञान परंपरा ने साहित्य को समृद्ध किया, और साहित्य ने इस ज्ञान को जनमानस तक पहुँचाने का कार्य किया। साथ ही, पुस्तक यह भी दर्शाने का प्रयास करती है कि आज के समय में भारतीय साहित्य की पुनः व्याख्या करते हुए किस प्रकार से भारतीय ज्ञान परंपरा को समझा और पुनर्परिभाषित किया जा सकता है।
पश्चिमी आलोचना पद्धतियों के प्रभाव के बावजूद, भारतीय साहित्य में अपने विशिष्ट आलोचनात्मक उपकरण रहे हैं – जैसे रस सिद्धांत, अलंकार शास्त्र, ध्वनि सिद्धांत, औचित्य और लोकदृष्टि। इन सिद्धांतों का संबंध केवल सौंदर्यबोध से नहीं, बल्कि ज्ञानबोध से भी है। यह पुस्तक इन पारंपरिक पद्धतियों की पुनर्प्रासंगिकता पर भी विचार करती है।
इस ग्रंथ में प्रयुक्त दृष्टिकोण न तो केवल पारंपरिक है और न ही केवल आधुनिक। यह एक संवादात्मक प्रयास है – भारतीय परंपरा और समकालीन सोच के मध्य। इस पुस्तक का उद्देश्य न केवल अतीत की ओर देखना है, बल्कि वर्तमान और भविष्य के लिए उस ज्ञान की उपयोगिता को भी उजागर करना है जो भारतीय साहित्य के माध्यम से हमें प्राप्त हुआ है।
हमें आशा है कि यह पुस्तक विद्यार्थियों, शोधार्थियों, शिक्षकों तथा भारतीय साहित्य और संस्कृति में रुचि रखने वाले पाठकों के लिए उपयोगी सिद्ध होगी।
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