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"कांच की आत्मा" एक गहन आत्मकथात्मक कथा है, जो एक ऐसे व्यक्ति की अंतर्ज्ञानात्मक यात्रा को प्रस्तुत करती है, जो जीवन के हर मोड़ पर टूटा—पर कभी बिखरा नहीं। यह पुस्तक एक ऐसी आत्मा की कहानी है जिसने बचपन में उपेक्षा झेली, युवावस्था में विश्वासघात सहा, और वयस्क जीवन में अकेलेपन, कर्ज और संघर्ष का सामना किया।
यह उपन्यास केवल व्यक्तिगत पीड़ा का दस्तावेज़ नहीं है, बल्कि उन सभी पाठकों का प्रतिनिधित्व करता है जो जीवन की कठिनाइयों के बीच भी खुद को फिर से खड़ा करना सीखते हैं। पिता की मृत्यु, संपत्ति से वंचित किया जाना, प्रेम में छला जाना, आर्थिक तंगी, और सामाजिक दूरी — इन सबके बीच लेखक ने शब्दों को अपना संबल बनाया और टूटे हुए कांच की किरचों से ही अपनी पहचान गढ़ी।
"कांच की आत्मा" एक गूढ़ प्रश्न पूछती है —
क्या टूटा हुआ व्यक्ति वास्तव में असफल होता है?
या वही टूटन उसे नया आकार देती है?
यदि आपने जीवन में कभी अकेलापन, संघर्ष या आंतरिक झंझावात का अनुभव किया है — तो यह पुस्तक आपकी आत्मा को छू सकती है।
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