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यह पुस्तक हिंदुत्व की अवधारणा को उसके ऐतिहासिक उद्गम से लेकर उसके वर्तमान स्वरूप तक, एक व्यापक और विश्लेषणात्मक दृष्टिकोण से परखने का प्रयास करती है। हमारा उद्देश्य इस जटिल विषय की परतों को खोलना है, यह समझना है कि यह कैसे एक विचार के रूप में उभरा, किन चरणों से गुजरा, और आधुनिक भारत के राष्ट्रीय विमर्श में अपनी वर्तमान स्थिति तक पहुंचा।
अक्सर, हिंदुत्व को हिंदू धर्म के साथ भ्रमित किया जाता है। हालांकि ये दोनों शब्द एक ही मूल 'हिंदू' से निकले हैं, लेकिन उनके अर्थ और निहितार्थों में महत्वपूर्ण अंतर है। हिंदू धर्म एक प्राचीन, बहुआयामी और उदार धार्मिक-सांस्कृतिक परंपरा है जिसमें आस्थाओं, दर्शनों और जीवन शैलियों की एक विशाल श्रृंखला समाहित है। इसके विपरीत, हिंदुत्व, जैसा कि इसे बीसवीं सदी की शुरुआत में परिभाषित किया गया था, मुख्य रूप से एक राजनीतिक-सांस्कृतिक विचारधारा है जो भारत को एक 'हिंदू राष्ट्र' के रूप में देखती है, जो एक साझा भू-सांस्कृतिक पहचान, पूर्वजों और राष्ट्रीय गौरव पर आधारित है। यह अंतर इस पुस्तक का प्रारंभिक और केंद्रीय बिंदु होगा, जिसे हम अध्याय 1 में विस्तार से समझेंगे।
हिंदुत्व की कहानी भारतीय राष्ट्रवाद के उदय की कहानी से अविभाज्य रूप से जुड़ी हुई है। उन्नीसवीं सदी के अंत और बीसवीं सदी की शुरुआत में, ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के तहत, भारतीयों ने अपनी पहचान और राष्ट्र के स्वरूप पर गहरे विचार-विमर्श शुरू किए। यह वह समय था जब भारतीय समाज में सुधारवादी आंदोलन चल रहे थे, और 'भारतीय राष्ट्र' की अवधारणा को परिभाषित करने के प्रयास किए जा रहे थे। इन प्रयासों में, कुछ विचारकों ने भारत की पहचान को उसके 'हिंदू' विरासत से जोड़कर देखा। अध्याय 2 में हम इस ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को खंगालेंगे, जिससे हिंदुत्व के उदय की जमीन तैयार हुई।
इस विचारधारा के सबसे प्रमुख सूत्रधार विनायक दामोदर सावरकर थे, जिनकी 1923 में प्रकाशित पुस्तक "हिंदुत्व: हू इज अ हिंदू?" ने इस अवधारणा को एक सुसंगत रूप दिया। सावरकर ने हिंदुत्व की एक भू-सांस्कृतिक परिभाषा प्रस्तुत की, जिसमें भारत भूमि के प्रति प्रेम, साझा संस्कृति और एक ही वंश से उत्पन्न होने की भावना को केंद्रीय महत्व दिया गया। अध्याय 3 सावरकर के विचारों और उनकी ऐतिहासिक देन का विश्लेषण करेगा। सावरकर के विचारों को व्यवहारिक रूप देने और जन-जन तक ले जाने में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) और अन्य संबंधित संगठनों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। अध्याय 4 में हम आरएसएस के संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार और संगठन की प्रारंभिक कार्यप्रणाली पर प्रकाश डालेंगे, जिसने हिंदुत्व को एक जमीनी आंदोलन में बदलने की नींव रखी। स्वतंत्रता-पूर्व और स्वतंत्रता-पश्चात भारत में हिंदुत्व का विकास आसान नहीं था। महात्मा गांधी की हत्या के बाद आरएसएस पर प्रतिबंध लगा, और स्वतंत्र भारत ने धर्मनिरपेक्षता के आदर्श को अपनाया। ऐसे में, हिंदुत्व के विचार को राजनीतिक और सामाजिक स्वीकृति के लिए लंबा संघर्ष करना पड़ा। अध्याय 5 और 6 में हम इन चुनौतियों का, जनसंघ से भाजपा तक की यात्रा का, और राम जन्मभूमि आंदोलन जैसे प्रमुख मोड़ों का विश्लेषण करेंगे, जिन्होंने हिंदुत्व को भारतीय राजनीति के केंद्र में ला खड़ा किया।
इक्कीसवीं सदी में, हिंदुत्व एक प्रमुख राजनीतिक शक्ति के रूप में उभरा है, जिसने भारत की घरेलू नीतियों, विदेश संबंधों और सांस्कृतिक विमर्श को नया आकार दिया है। अध्याय 7 समकालीन हिंदुत्व के विभिन्न आयामों – आर्थिक राष्ट्रवाद, सांस्कृतिक राष्ट्रवाद, और वैश्विक प्रभाव – को समझने का प्रयास करेगा।
हालांकि, हिंदुत्व एक निर्विवाद विचारधारा नहीं है। यह गहन आलोचना और तीखी बहस का विषय रहा है। धर्मनिरपेक्षता, अल्पसंख्यकों के अधिकारों, ऐतिहासिक पुनर्व्याख्या और समावेशिता जैसे मुद्दों पर इसके साथ गहरे मतभेद रहे हैं। अध्याय 8 में हम हिंदुत्व पर की गई प्रमुख आलोचनाओं और उन बहसों पर विचार करेंगे जो इसके स्वरूप को लेकर आज भी जारी हैं।
अंततः, हिंदुत्व का भविष्य क्या है? क्या यह भारतीय समाज और राजनीति में अपनी वर्तमान स्थिति बनाए रखेगा, या बदलते समय के साथ यह स्वयं को फिर से परिभाषित करेगा? अध्याय 9 में हम इन सवालों पर विचार करेंगे और इस विचारधारा की संभावित दिशाओं पर चिंतन करेंगे।
यह पुस्तक किसी पक्ष का समर्थन या विरोध करने का दावा नहीं करती है। हमारा उद्देश्य एक जटिल और अक्सर भावनात्मक रूप से चार्ज किए गए विषय पर एक संतुलित, सूचनात्मक और विश्लेषणात्मक परिप्रेक्ष्य प्रदान करना है। हम आशा करते हैं कि यह अध्ययन पाठकों को हिंदुत्व की अवधारणा को उसकी संपूर्णता में समझने में मदद करेगा, और उन्हें भारतीय पहचान के इस महत्वपूर्ण पहलू पर अपनी स्वयं की सूचित राय बनाने के लिए प्रेरित करेगा। यह एक ऐसी यात्रा है जो हमें भारत के अतीत, वर्तमान और भविष्य के चौराहे पर ले जाएगी।
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