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Type: Print Book
Genre: Literature & Fiction
Language: Hindi
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Description

हिन्दी साहित्य अपने आरम्भ से ही भारतीय समाज के बहुआयामी सरोकारों का वाहक रहा है। चाहे वह भक्ति-काल की आत्मिक साधना हो, रीतिकाल की जीवन-रसात्मकता हो, आधुनिक काल की राष्ट्रीय चेतना हो या समकालीन साहित्य की जन-पक्षधर दृष्टि—हर युग में साहित्यकारों ने अपने समय, समाज और संस्कृति से गहरा संवाद किया है।
यही कारण है कि हिन्दी साहित्य को केवल मनोरंजन या कल्पना की उड़ान का माध्यम मानना एक सरलीकरण होगा; वस्तुतः यह समाज के भीतर पल रही आकांक्षाओं, संघर्षों, विरोधाभासों और सपनों का दर्पण है।
इसी पृष्ठभूमि में प्रस्तुत संपादित ग्रंथ "हिन्दी साहित्य के सरोकार" तैयार किया गया है। इस ग्रंथ का उद्देश्य हिन्दी साहित्य के उन विविध आयामों पर विचार करना है, जो न केवल साहित्यिक रचनाओं को आकार देते हैं, बल्कि समाज के बौद्धिक और सांस्कृतिक विकास की दिशा भी निर्धारित करते हैं।
इस संकलन में सम्मिलित शोध-पत्र और लेख हिन्दी साहित्य के सरोकारों की पड़ताल करते हुए यह स्पष्ट करते हैं कि साहित्य किस प्रकार सामाजिक न्याय, लैंगिक समानता, पर्यावरण, तकनीकी बदलाव, वैश्वीकरण, भारतीय ज्ञान-परंपरा, लोकतांत्रिक मूल्य और सांस्कृतिक अस्मिता जैसे प्रश्नों से सक्रिय रूप से जुड़ा हुआ है।

लेख चयन के मापदंड:
ग्रंथ के लिए लेखों का चयन एक सुनियोजित प्रक्रिया के तहत किया गया है। सबसे पहले, संपादकीय टीम ने यह सुनिश्चित किया कि विषयवस्तु हिन्दी साहित्य के सरोकार शीर्षक के अनुरूप हो। इस प्रक्रिया में निम्न मापदंडों को विशेष महत्व दिया गया—
1. विषयगत प्रासंगिकता – प्रत्येक आलेख को इस दृष्टि से परखा गया कि वह हिन्दी साहित्य और समाज के सरोकारों के बीच संबंध को किस गहराई से स्थापित करता है। साहित्यिक आलोचना या विश्लेषण केवल सैद्धांतिक न होकर, उसमें सामाजिक, सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और समकालीन आयाम स्पष्ट रूप से उपस्थित हों।
2. नवीनता और मौलिकता – आलेख में प्रस्तुत विचार मौलिक हों तथा केवल परंपरागत निष्कर्षों की पुनरावृत्ति न करते हुए नये दृष्टिकोण सामने रखें। नवोन्मेषी लेखन को विशेष प्रोत्साहन दिया गया है।
3. शैक्षणिक मानक – प्रत्येक आलेख का भाषा-शैली, सन्दर्भ-उद्धरण, और तर्क-प्रमाण की दृष्टि से उच्च शैक्षणिक स्तर पर होना अनिवार्य था। आलेखों में अनुसंधान की दृष्टि से प्रमाणिक स्रोतों का उपयोग किया गया है।
4. विविधता और समावेशन – सम्पादकीय दृष्टि इस ओर भी रही कि विभिन्न विषयों, विधाओं और दृष्टिकोणों को शामिल किया जाए। उदाहरण स्वरूप, कुछ आलेख ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य से लिखे गये हैं, तो कुछ समकालीन विमर्शों पर केन्द्रित हैं। साथ ही, शोधार्थियों, नवोदित लेखकों और वरिष्ठ विद्वानों—सभी को प्रतिनिधित्व देने का प्रयास किया गया है।
5. समाजशास्त्रीय दृष्टि – साहित्य को समाज से काटकर नहीं देखा जा सकता। अतः चयनित लेखों में इस बात का विशेष ध्यान रखा गया कि वे हिन्दी साहित्य को उसके समाजशास्त्रीय, दार्शनिक और सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य में रखें।
6. वर्तमानता – साहित्यिक सरोकार स्थिर नहीं होते, वे समय के साथ बदलते रहते हैं। इसलिए चयनित आलेखों में समकालीन यथार्थ, जैसे कि वैश्वीकरण, डिजिटल संस्कृति, पर्यावरण संकट, स्त्री विमर्श, दलित विमर्श, और हाशिये की आवाज़ों पर भी विशेष ध्यान दिया गया है।
ग्रंथ की संरचना:
ग्रंथ की संरचना इस प्रकार की गई है कि पाठक को साहित्य के विविध सरोकारों की क्रमबद्ध और संतुलित समझ प्राप्त हो। प्रारम्भिक लेखों में साहित्य के ऐतिहासिक और सैद्धांतिक सरोकारों पर चर्चा है, जबकि अगले हिस्सों में समकालीन परिप्रेक्ष्यों से जुड़े आलेख शामिल किए गए हैं। अन्तिम भाग में भविष्य की चुनौतियों और संभावनाओं पर केन्द्रित विमर्श प्रस्तुत है।
ग्रंथ की उपयोगिता:
यह ग्रंथ शोधार्थियों, अध्येताओं, अध्यापकों और हिन्दी साहित्य में रुचि रखने वाले पाठकों के लिए समान रूप से उपयोगी सिद्ध होगा। इसमें शामिल आलेख न केवल साहित्य की विविध धाराओं को स्पष्ट करते हैं, बल्कि यह भी रेखांकित करते हैं कि साहित्य एक जीवंत प्रक्रिया है, जो हर समय अपने समाज और पाठक से संवाद करता है।
हमें विश्वास है कि "हिन्दी साहित्य के सरोकार" शीर्षक से प्रस्तुत यह संकलन हिन्दी साहित्यिक विमर्श को एक नयी ऊर्जा और दिशा प्रदान करेगा। यह ग्रंथ केवल शैक्षणिक पाठन की दृष्टि से ही नहीं, बल्कि साहित्य और समाज के बीच गहरे सम्बन्धों को समझने के इच्छुक प्रत्येक व्यक्ति के लिए मार्गदर्शक बनेगा।
आभार:
अन्त में, हम उन सभी विद्वानों, लेखकों और शोधार्थियों का आभार व्यक्त करते हैं, जिनके सहयोग से यह ग्रंथ संभव हो पाया। विशेष रूप से हम योगदान देने वाले लेखकों के प्रति कृतज्ञ हैं, जिनकी गंभीरता और शोध-परक दृष्टि ने इस ग्रंथ को समृद्ध बनाया है। साथ ही, संपादकीय सहयोगियों और प्रकाशन टीम के प्रति भी हम हृदय से आभार प्रकट करते हैं।
हमें पूर्ण विश्वास है कि यह ग्रंथ हिन्दी साहित्य की परंपरा और उसकी सामाजिक जिम्मेदारियों पर होने वाले विमर्श को और अधिक सार्थक तथा व्यापक बनाएगा।
संपादक द्वय

About the Authors

डॉ. राम आशीष तिवारी वर्तमान में शासकीय राज मोहिनी देवी कन्या स्नातकोत्तर महाविद्यालय, अंबिकापुर (छत्तीसगढ़) के हिन्दी विभाग में सहायक प्राध्यापक के पद पर कार्यरत हैं। आपने अपनी उच्च शिक्षा प्रतिष्ठित काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी से प्राप्त की है। हिन्दी भाषा और साहित्य के गहन अध्येता के रूप में आपने अध्यापन, अनुसंधान और साहित्यिक सृजन—तीनों ही क्षेत्रों में उल्लेखनीय योगदान दिया है।
आपके अनेक शोध-पत्र देश और विदेश की प्रतिष्ठित शोध-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं, जिनमें साहित्य, भाषा-विज्ञान, समालोचना और आधुनिक विमर्श संबंधी विविध आयामों पर आपकी गहन विद्वत्ता परिलक्षित होती है। डॉ. तिवारी ने कई महत्त्वपूर्ण पुस्तकों का लेखन और संपादन किया है, जो हिन्दी साहित्य-जगत को नई दृष्टि प्रदान करती हैं। आपकी लेखनी न केवल अकादमिक गंभीरता को व्यक्त करती है, बल्कि साहित्यिक संवेदना और समाजिक सरोकारों का भी परिचायक है।
आपने महाविद्यालय और विश्वविद्यालय स्तर पर अनेक प्रशासनिक एवं शैक्षणिक दायित्वों को सफलता के साथ निभाया है, जिनमें पाठ्यक्रम निर्माण, सांस्कृतिक एवं साहित्यिक आयोजनों का संचालन, शोध-छात्रों का मार्गदर्शन तथा अकादमिक समितियों में सक्रिय सहभागिता विशेष रूप से उल्लेखनीय है। आपके कार्यों ने विद्यार्थियों और सहकर्मियों दोनों को समान रूप से प्रेरित किया है।
आपका स्थायी निवास ग्राम – महरछा, जंघई, जनपद प्रयागराज (उत्तर प्रदेश), पिन–212401 है।

संपादक परिचय
धर्मेन्द्र कुमार पाटनवार वर्तमान में हिंदी विषय के सहायक प्राध्यापक के रूप में शासकीय इंद्रावती महाविद्यालय, भोपाल पटनम, जिला बीजापुर (छत्तीसगढ़) में कार्यरत हैं। वे हिंदी साहित्य और भाषा के अध्यापन के साथ-साथ शोध एवं आलोचना के क्षेत्र में भी सक्रिय योगदान दे रहे हैं। उनकी शैक्षणिक यात्रा निरंतर परिश्रम, जिज्ञासा और समर्पण का परिणाम है, जिसने उन्हें एक गंभीर अध्येता एवं संवेदनशील शिक्षक के रूप में स्थापित किया है।
छत्तीसगढ़ की समृद्ध सांस्कृतिक और लोक परंपराओं से गहरे जुड़े होने के कारण धर्मेन्द्र कुमार पाटनवार की अकादमिक दृष्टि न केवल पाठ्यक्रमीय अध्ययन तक सीमित है, बल्कि वे साहित्य और समाज के अंतर्संबंधो को समझने और समझाने में भी रुचि रखते हैं। उनका मानना है कि साहित्य केवल मनोरंजन का साधन नहीं है, बल्कि यह समाज के विचारों, संस्कारों और मानवीय मूल्यों को संरक्षित करने का एक सशक्त माध्यम भी है। इसी कारण वे अपने विद्यार्थियों को कक्षाओं में भाषा, साहित्य के व्यावहारिक सरोकारों से भी जोड़ने का प्रयास करते हैं।
भोपाल पटनम जैसे आदिवासी एवं पिछड़े क्षेत्र में कार्यरत रहते हुए वे शिक्षा की वास्तविक चुनौतियों से भी अवगत हैं। यहाँ शिक्षा केवल ज्ञानार्जन का साधन नहीं, बल्कि सामाजिक परिवर्तन और सशक्तिकरण का माध्यम है। धर्मेन्द्र कुमार पाटनवार इस दृष्टि से शिक्षा को एक मिशन मानते हैं। वे विद्यार्थियों के बौद्धिक विकास के साथ-साथ उनमें सांस्कृतिक चेतना और मानवीय संवेदनाओं का भी संचार करने के पक्षधर हैं।
साहित्य के क्षेत्र में उनकी रुचि विशेष रूप से हिंदी आलोचना, छत्तीसगढ़ी लोक-साहित्य और आधुनिक हिंदी साहित्यिक प्रवृत्तियों में है। वे मानते हैं कि हिंदी भाषा और साहित्य भारतीय संस्कृति का आधार स्तंभ है और इसका अध्ययन हमें अपनी जड़ों से जुड़े रहने का अवसर प्रदान करता है। उनका प्रयास रहता है कि विद्यार्थियों को साहित्य केवल परीक्षा की दृष्टि से न पढ़ाया जाए, बल्कि उन्हें उसके सामाजिक, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व से भी अवगत कराया जाए।
धर्मेन्द्र कुमार पाटनवार न केवल अध्यापन कार्य में, बल्कि शोध और रचनात्मक लेखन में भी सक्रिय हैं। वे समय-समय पर विभिन्न शैक्षणिक गतिविधियों, सेमिनारों और कार्यशालाओं में भाग लेते रहते हैं। साथ ही, वे नई पीढ़ी को शोध और आलोचना की दिशा में प्रेरित करने का कार्य भी करते हैं। उनका मानना है कि किसी भी शिक्षक की सबसे बड़ी उपलब्धि उसके विद्यार्थियों की सफलता और उनके व्यक्तित्व निर्माण में योगदान है।

Book Details

ISBN: 9788199271494
Publisher: Sjain Publication
Number of Pages: 186
Dimensions: 5.5"x8.5"
Interior Pages: B&W
Binding: Paperback (Perfect Binding)
Availability: In Stock (Print on Demand)

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हिन्दी साहित्य के सरोकार

हिन्दी साहित्य के सरोकार

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