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हिंदी के प्रमुख कवि

डॉ. लाला प्रवीण कुमार सिन्हा
Type: Print Book
Genre: Education & Language
Language: Hindi
Price: ₹343 + shipping
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Description

'हिंदी के प्रमुख कवि' शीर्षक कृति केवल कवियों के जीवन और मृत्यु की तिथियों का एक संग्रह मात्र नहीं है, बल्कि यह हिंदी साहित्य के विशाल सागर में एक गहन गोता लगाने जैसा है। इसके महत्व को इन बिंदुओं के माध्यम से समझा जा सकता है:
विश्लेषणात्मक दृष्टिकोण: यह पुस्तक केवल तथ्यात्मक जानकारी, जैसे- जन्म, स्थान, और रचनाओं की सूची देकर नहीं रुक जाती। इसके बजाय, यह प्रत्येक कवि के साहित्यिक अवदान का गहन मूल्यांकन करती है। यह विश्लेषण करती है कि किसी कवि ने हिंदी साहित्य को क्या नया दिया, उनकी शैली में क्या विशिष्टता थी, और साहित्य के इतिहास में उनका स्थान क्यों और कैसे निर्धारित हुआ। यह 'क्या' के साथ-साथ 'क्यों' और 'कैसे' का भी उत्तर देती है।
युगीन चेतना का प्रतिबिंब: कोई भी कवि अपने समय और समाज से अछूता नहीं रह सकता। यह कृति कवियों को उनके समय की सामाजिक, राजनीतिक, और सांस्कृतिक परिस्थितियों के आईने में रखकर देखती है। यह समझाती है कि कैसे एक कवि की रचनाओं में उस युग की आशाएँ, निराशाएँ, संघर्ष और मूल्य प्रतिबिंबित होते हैं। कबीर अपने समय के पाखंड पर प्रहार करते हैं, तो निराला अपनी कविताओं में युगीन पीड़ा और विद्रोह को स्वर देते हैं। इस प्रकार, यह कृति कवि को एक व्यक्ति के रूप में नहीं, बल्कि अपने युग के प्रतिनिधि के रूप में प्रस्तुत करती है।
काव्य-सौंदर्य की सूक्ष्म पड़ताल: कविता का असली आनंद उसके सौंदर्य को समझने में है। यह कृति कवियों की रचनाओं का सतही पाठ करने के बजाय उनके मर्म तक पहुँचती है। यह कविताओं के भाव-पक्ष (विचार, भावना, दर्शन) और कला-पक्ष (भाषा, छंद, अलंकार, प्रतीक, बिंब) की गहराई से जाँच करती है। यह बताती है कि कवि ने अपनी बात को प्रभावशाली बनाने के लिए किन शब्दों, किन शिल्पों और किन शैलियों का प्रयोग किया, जिससे पाठक कविता के वास्तविक रस का आस्वादन कर पाता है।
परंपरा का मूल्यांकन और विकास-यात्रा: हिंदी कविता एक अटूट परंपरा की देन है। यह कृति अलग-अलग कवियों का अध्ययन करते हुए पाठक को हिंदी कविता की पूरी विकास-यात्रा से परिचित कराती है। यह दर्शाती है कि कैसे आदिकाल से लेकर आधुनिक काल तक कविता ने अलग-अलग मोड़ लिए, कैसे विभिन्न काव्य-धाराओं (जैसे भक्ति-काव्य, रीति-काव्य, छायावाद, प्रगतिवाद) का उदय हुआ, और कैसे एक कवि ने अपने पूर्ववर्ती कवियों से प्रेरणा ली और अपने परवर्ती कवियों के लिए मार्ग प्रशस्त किया।
समकालीन प्रासंगिकता पर विमर्श: महान साहित्य कभी पुराना नहीं होता। इस कृति का एक महत्वपूर्ण पहलू यह भी है कि यह स्थापित करती है कि सदियों पहले लिखे गए इन कवियों का साहित्य आज के समय में भी क्यों महत्वपूर्ण और प्रासंगिक है। यह बताती है कि उनके द्वारा उठाए गए मुद्दे, जैसे- मानवीय मूल्य, सामाजिक न्याय, प्रेम, और अस्तित्व का संघर्ष, आज भी उतने ही जीवंत हैं। यह कृति पाठक को यह सोचने पर विवश करती है कि हम इन महान कवियों से आज क्या सीख सकते हैं और उनका साहित्य हमारे वर्तमान को कैसे दिशा दे सकता है।

About the Author

हिंदी और अंग्रेजी विषय से एमए किये डॉ. लाला प्रवीण कुमार सिन्हा ने अपनी अकादमिक यात्रा की शुरुआत 1988 से अंगीभूत इकाई राजेंद्र मिश्र महाविद्यालय सहरसा से की, तत्पश्चात सहरसा के प्रतिष्ठित एमएलटी सहरसा महाविद्यालय के हिंदी विभाग में 2010 में इनका स्थानांतरण हो गया, अपने लंबे कार्यकाल के दौरान इन्होंने वर्षों तक छात्रों को हिंदी भाषा और साहित्य का गहन ज्ञान प्रदान किया। बतौर सह-प्राध्यापक के रूप में, इन्होंने न केवल पठन-पाठन में अपनी एक विशिष्ट पहचान बनाई है, बल्कि अकादमिक गतिविधियां, शोध कार्यों और विभाग के समग्र विकास में भी इनके द्वारा सक्रिय भूमिका का निर्वहन किया गया है। डॉ. लाला प्रवीण कुमार सिन्हा एक प्रतिबद्ध शिक्षाविद, कुशल प्रशासक और संवेदनशील लेखक तो हैं, ही साथ ही पत्रकारिता में भी इनकी गहन अभिरुचि रही है तथा प्रांतीय एवं राष्ट्रीय स्तर के कई समाचार पत्रों मसलन दैनिक जागरण, हिंदुस्तान राष्ट्रीय सहारा, आज अखबारों में अंशकालिक संवाददाता के तौर पर भी इन्होंने कार्य किया है, बिहार सरकार द्वारा इन्हें मान्यता प्राप्त संवाददाता का दर्जा भी कई दफा दिया जा चुका है, अपने लेखन की शुरुआत इनके द्वारा किशोरावस्था में ही की जा चुकी थी तथा वर्ष 1984 से ही इनकी रचनाओं का प्रकाशन कई अखबारों एवं प्रतियोगिता दर्पण आदि पत्र पत्रिकाओं में होना प्रारंभ हो गया था और यह सिलसिला फिलवक्त भी कायम ही है, महाविद्यालय से प्रकाशित होने वाले पत्रिका में भी इनका विशेष योगदान रहा करता है, सामाजिक कार्यों में भी इनकी गहन अभिरुचि रही है, तथा कई सामाजिक संगठनों से भी ये जुड़े हुए हैं।
फिलहाल वर्ष जून 2024 से भूपेंद्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय अंतर्गत के स्नातकोत्तर केंद्र, पश्चिमी परिसर सहरसा में हिंदी विभाग के अध्यक्ष के रूप में इनकी नई भूमिका की शुरुआत हुई है और अपने अल्प कार्यकाल के दौरान ही इन्होंने विभाग का कायाकल्प कर दिया है, इस दौरान विभाग में कई सेमिनार का आयोजन किया गया जिसमें हिंदी के मूर्धन्य विद्वानों को आमंत्रित किया गया जो इनके हिंदी शिक्षा और साहित्य के प्रति गहरे समर्पण एवं लगाव का दिग्दर्शन कराता है। इनके अकादमिक कुशल नेतृत्व और साहित्यिक अभिरुचि निश्चित रूप से आने वाले समय में हिंदी भाषा, साहित्य और शोध के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान देगी , जिससे नई पीढ़ी को प्रेरणा मिलेगी।

Book Details

ISBN: 9788198594860
Publisher: RCIT
Number of Pages: 164
Dimensions: A5
Interior Pages: B&W
Binding: Paperback (Perfect Binding)
Availability: In Stock (Print on Demand)

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