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हिन्दी उपन्यास परंपरा अपने आरम्भ से ही चरित्र-चित्रण की सशक्त परंपरा के लिए जानी जाती है। उपन्यास, जीवन की जटिलताओं, अनुभवों और मानवीय मनोविज्ञान के सूक्ष्म आयामों को अभिव्यक्त करने वाली सर्वाधिक प्रभावकारी गद्य-विधा है। कथा-वस्तु, भाषा, शिल्प और शैली- इन सभी के मध्य भी चरित्र-शिल्प वह आधार है, जो किसी भी उपन्यास को जीवन, गति और अर्थ प्रदान करता है। इसीलिए महान आलोचकों ने बार-बार यह स्पष्ट किया है कि उपन्यास का मूल सार उसके पात्रों में निहित होता है।
प्रस्तुत शोध-कृति ‘राजेन्द्र मोहन भटनागर के उपन्यास सरदार में चरित्र-शिल्प’ इसी दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। ‘सरदार’ केवल एक उपन्यास नहीं, बल्कि स्वतंत्र भारत के निर्माण में निर्णायक भूमिका निभाने वाले लौह पुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल के जीवन, संघर्ष, संकल्प और अदम्य नेतृत्व का जीवंत दस्तावेज़ है। यह उपन्यास जीवनीपरक रचना होते हुए भी केवल घटनाओं का अनुक्रम नहीं, बल्कि उस व्यक्तित्व की गहराई में उतरने का प्रयास है, जिसने भारत के राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक इतिहास को नई दिशा दी।
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