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भूमिका
प्रवास और स्त्री विमर्श का संबंध इतिहास के उन पहलुओं से जुड़ा है जो समाज में शक्ति संरचनाओं, सांस्कृतिक पहचान और व्यक्तिगत स्वतंत्रता को परिभाषित करते हैं। यह पुस्तक ऐसे समय में प्रकाशित हो रही है जब प्रवास और स्त्री विमर्श के मुद्दे अत्यंत प्रासंगिक हो गए हैं। प्रवास के कारण न केवल भौगोलिक सीमाएँ बदलती हैं, बल्कि यह सामाजिक और सांस्कृतिक संरचनाओं को भी चुनौती देता है।
स्त्रियों के संदर्भ में, प्रवास का प्रभाव बहुआयामी होता है। एक ओर यह उन्हें आत्मनिर्भर बनने और नई पहचान स्थापित करने का अवसर देता है, वहीं दूसरी ओर यह उनके जीवन में नए संघर्षों और असमानताओं को जन्म देता है। इस पुस्तक की भूमिका इन दोनों पहलुओं पर गहराई से विचार करते हुए यह समझने का प्रयास करती है कि कैसे स्त्रियाँ प्रवास के अनुभवों से गुजरते हुए अपने लिए नए अवसर और स्वतंत्रता का निर्माण करती हैं।
यह पुस्तक समाजशास्त्रीय, सांस्कृतिक और साहित्यिक दृष्टिकोण से उन प्रश्नों का उत्तर तलाशने का प्रयास करती है जो प्रवास और स्त्री विमर्श को जोड़ते हैं। यह इस बात पर प्रकाश डालती है कि किस प्रकार प्रवासी स्त्रियों के अनुभव केवल उनके व्यक्तिगत जीवन तक सीमित नहीं रहते, बल्कि वे व्यापक समाज पर भी गहरा प्रभाव डालते हैं।
भूमिका के रूप में यह खंड उन विचारों और धारणाओं को प्रस्तुत करता है जो इस पुस्तक के हर अध्याय की नींव हैं। यह प्रवास और स्त्री विमर्श के बदलते स्वरूप को समझने के लिए एक परिप्रेक्ष्य प्रदान करता है और इस विषय में रुचि रखने वाले पाठकों के लिए एक आधारशिला स्थापित करता है।
संपादिका
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