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इंजीनियरिंग कालेज के छात्र जीवन पर आधारित एक लघु उपन्यास. चार वर्षों के काल में कैसे कैसे छात्र रहते हैं. कैसे मौज मस्ती, हुड़दंग, लड़ाई, झगड़ा, पढाई, बवाल करते हैं. एक्सकर्जन टूर पे क्या होता है. छात्रावास यानि हॉस्टल का जीवन कैसे जीते है. और फिर जब कालेज से निकल जाते हैं तब क्या होता है.
कथानक को तीव्र गति देने की चेष्टा की गई है. जिससे पाठकगण बंधे रहें.
We have really gone through a great experience in the four years at College. Refreshing memories. Great efforts DK. Keep it up
मेरा मालवीया
इस पुस्तक को पढ़ते समय मालवीया में बिताये हुये चार सुनहरे वर्षों को पुनः जीने का आभास होता है। धर्मा तथा अन्य सभी पात्र परिचित से प्रतीत होते हैं।
लेखक ने पूरी ईमानदारी से घटनाओं का सजीव वर्णन किया है। उनकी स्मरणशक्ति प्रशंसा के योग्य है।
श्री धर्मेंद्र सिंह ने गुज़रे हुये जमाने को जीवन्त कर हमारे सामने प्रस्तुत किया है। उन्हें साधुवाद!
मैं इस पुस्तक को पूरे पाँच सितारे प्रदान करता हूँ।
- अवधेश कुमार सिंह, मालवीयन 1974 (मेकैनिकल)