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यह पुस्तक जैन धर्म के मूलभूत सिद्धांतों की जनोन्मुखी व्याख्या करती है । इसमें जैन धर्म के सिद्धांतों की व्यापकता और समकालीन समाज तथा वैश्विक परिस्थितियों में उनकी उपयोगिता तथा प्रभाव का गहन चिंतनपरक विश्लेषण किया गया है । इसके साथ ही इसमें सनातन धर्म में इन लक्षण धर्मों के साम्य का उल्लेख भी है । यह सिद्धांतो के व्यावहारिक पक्ष को लेकर गंभीर प्रश्न उपस्थित करती है और उनके समाधान के लिए मार्ग भी सुझाती है । यह जैन सिद्धांतों के प्रकृति के साथ स्वाभाविक सामंजस्य का निरूपण भी करती है इसलिए यह जैन सिद्धांतो पर विमर्श प्रस्तुत करने के बाद भी मात्र वहीँ तक सीमित नहीं रहती , इसकी केन्द्रीय चिंता में मनुष्यमात्र है।
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