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“मैं चाहता हूं”
आप लोगों के सम्मुख रखते हुए मैं अत्यंत प्रसन्न हूँ, मेरा ये कविता, गीत, गज़ल का एक ऐसा संग्रह है जिसे मैंने अपने जीवन के भावपूर्ण पलों को शब्दों में पिरोने का प्रयास किया है। मेरा ज्यादा समय हिमालय में रहते या घूमते हुए बीता है। प्रकृति के सौंदर्य को देखते देखते मैं कब उसके प्रेम में पड़ गया, उसका पता ही नहीं चला। धीरे-धीरे सौंदर्यबोध बढ़ता चला गया, जिसकी परिणिति मेरी नाट्य कला की शिक्षा लेने से हुई, और लगभग 25 वर्षों से दृश्यकाव्य का विद्यार्थी हूँ । आज भी प्रकृति से कुछ न कुछ सीखता रहता हूँ, हिमालय के सौंदर्य को देख अभिभूत रहता हूँ और ये महसूस करता हूँ की प्रकृति जैसी है, सुन्दर है ।परिवर्तन प्रकृति का नियम है, जो नित नूतन है । प्रकृति की ये नूतनता मुझे अपने भीतर के शून्य को खोजने के लिए प्रेरित करती है । प्रकृति को सौंदर्य को देखते देखते किसी दिन स्वयं का भी बोध हो जाए, “मैं चाहता हूँ”।
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