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गीता को उपनिषदों का सार कहा जाता है। इस पुस्तक में उपनिषदों के परिप्रेक्ष्य में गीता की सरल व्याख्या प्रस्तुत की गई है। उपनिषदों की जटिलता एवं विस्तृतता के कारण इन्हें समझना कठिन होता है। इस पुस्तक में बड़ी सरलता, स्पष्टता एवं व्याावहारिक दृष्टिकोण से गीता एवं उपनिषदों के गूढ़ तत्वों को समझाया गया है।
क्या जगत् वास्तविक है ? क्या हम स्वप्न में हैं? क्या मैं ब्रह्म हूँ या शरीरमात्र? क्या ईश्वर की सत्ता है? दु:खों से कैसे छूटा जाए? वास्तविक सुख क्या है? जीवन को सर्वोत्तम प्रकार से कैसे जिया जाए? इन सभी महत्वपूर्ण प्रश्नों का उत्तर इस पुस्तक में उपलब्ध है। इसके अतिरिक्त इस पुस्तक को पढ़कर आत्मा, ईश्वर, ब्रह्म, शिव, शक्ति, माया, जीव, जगत्, जन्म, मृत्यु, ज्ञान, अज्ञान, कर्म, बन्धन एवं मोक्ष आदि विषयों के संबंध में पाठकों की समझ विकसित होगी। इस बोध से व्यक्ति का संसार को देखने का दृष्टिकोण बदल जाता है। इससे उसके मन में एक गहरी शान्ति का उदय होता है।
गीता उपनिषदों एवं भारत के तीन प्रमुख दर्शनों- योग दर्शन, वेदान्त दर्शन एवं सांख्य दर्शन को सारभूत करते हुए अध्यात्म को सर्वोत्तम एवं सरलतम ढंग से समझाने में सफल रही है। गीता महाभारत के भीष्म पर्व का एक अंश है जिसमें कौरवों के विरूद्ध युद्धभूमि में किंकर्तव्यविमूढ़ एवं शोकाकुल अर्जुन को भगवान् श्रीकृष्ण द्वारा 700 श्लोकों में ज्ञान, कर्म एवं भक्ति का उपदेश दिया गया है।
गीता उस प्रत्येक व्यक्ति लिए उपयोगी है जिसका मन अशांति, भय तथा उलझन में है। जो शांति और ज्ञान का पिपासु है, गीता उसके लिए है। जो अपने जीवन में कर्तव्य और अकर्तव्य के संबंध में उलझन में है, गीता उसके लिए है। जिसे परम सत्य को जानने की जिज्ञासा है, गीता उसके लिए है। जो अपने वास्तविक स्वरूप को जानना चाहता है, गीता उसके लिए है। जो अपने दु:खों से मुक्ति चाहता है, गीता उसके लिए है। जो अपने मन को जानना चाहता है, गीता उसके लिए है। जो संसार की यथार्थता को जानना चाहता है, गीता उसके लिए है।
गीता का फल है शाश्वत शांति। गीता का फल है भ्रमों और दु:खों से मुक्ति। गीता का फल है झूठ की परतों का निवारण। गीता जीवन जीने की कला है। इस पुस्तक में श्रीमद्भगवद्गीता को उपनिषदों के परिप्रेक्ष्य में सरलता एवं सुस्पष्टता से समझाने का प्रयास किया गया है। आशा है कि आप सुधी पाठकजन इस पुस्तक को समझकर इससे लाभ उठा पायेंगे।
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