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यह पुस्तक तीन पुस्तक भागों को मिलाकर बनी है। प्रथम भाग में केंचुआ-पालन व जैविक खाद से सम्बंधित व्यावहारिक/स्वानुभूत जानकारी है। द्वितीय भाग में पोलीहाऊस व उसमें उगने वाली फसलों की खेती से सम्बंधित व्यावहारिक/स्वानुभूत जानकारी है। पुस्तक के तृतीय भाग में वर्षाजल संग्रहण से सम्बंधित समस्त जानकारी व्यावहारिक व स्वानुभूत रूप में उपलब्ध है। इस पुस्तक के उन तीनों भागों के नाम निम्नलिखित हैं-
1) भाग-1 केंचुआ पालन- एक अध्यात्म-मिश्रित भौतिक शौक
2) भाग-2 पोलीहाऊस खेती- एक अध्यात्म-मिश्रित भौतिक शौक
3) भाग-3 वर्षाजल संग्रहण- एक अध्यात्म-मिश्रित भौतिक शौक
लेखक ने अपने जीवन के बहुमूल्य वर्षों को प्रकृति के बीच में बिताया। उस दौरान उन्होंने केंचुआ-आधारित जैविक खेती, पोलीहाऊस आधारित खेती, और वर्षाजल संग्रहण के सम्बन्ध में गंभीर अध्ययन किया, व उन्हें वैज्ञानिकता के साथ समग्र रूप में अपनाकर बहुत से प्रेक्टिकल तजुर्बे हासिल किए। अपने उन्हीं अनुभवों को लेखक ने एक आत्मकथा के रूप में, सुन्दरता के साथ इस पुस्तक में प्रकट किया है।
भाग-1) केंचुआ पालन- एक अध्यात्म-मिश्रित भौतिक शौक- इस पुस्तक/पुस्तक भाग में केंचुआ-पालन से सम्बंधित सारी जानकारियाँ हैं। लेखक ने 2-3 सालों तक खुद केंचुआ पालन किया था। उस दौरान लेखक को बहुत से भौतिक व आध्यात्मिक अनुभव हुए। बेशक लेखक ने बहुत सी जानकारियां सम्बंधित विभाग के अधिकारियों से और इंटरनेट से प्राप्त कीं, यद्यपि उन्हें दैनिक व्यवहार में ढालने का काम स्वयं लेखक ने ही किया। लेखक का मानना है कि इस लघु पुस्तक को पढ़कर कोई भी व्यक्ति केंचुआ-पालन में पारंगत हो सकता है।
भाग-2) पोलीहाऊस खेती- एक अध्यात्म-मिश्रित भौतिक शौक- मित्रो, पोलीहाऊस फार्मिंग का एक अपना अलग ही क्रेज है। इससे जहाँ शौक पूरा होता है, वहीँ पर खाने को ताजा व जैविक तौर पर उगाई गईं सब्जियां भी मिलती हैं। यदि पोलीहाऊस बड़ा हो, तो सब्जियों को बेचकर अच्छी आमदन भी कमाई जा सकती है। पोलीहाऊस की एक खासियत यह है कि हम उसमें सब्जियों को बिना किसी रासायनिक खाद व कीटनाशक के उगा सकते हैं। इसलिए उसमें उगी सब्जियां स्वास्थ्य के लिए सर्वोत्तम होती हैं। एक योगी के लिए तो वे बहुत बढ़िया होती हैं। वैसे भी योगियों का शरीर और मन बहुत संवेदनशील होते हैं। वे रासायनिक चीजों को एकदम से नकार देते हैं। इस भाग में पोलीहाऊस से सम्बंधित सभी व्यावहारिक जानकारियाँ हैं।
भाग-3) वर्षाजल संग्रहण- एक अध्यात्म-मिश्रित भौतिक शौक- मित्रो, बात उस समय की है जब भारत की नरेगा योजना अपने चरम पर थी। केंद्र से धड़ाधड़ बजट आ रहा था। राज्य सरकारें उसे खर्च नहीं कर पा रही थीं। कुशल कामगारों की किल्लत पहले से ही थी, ऊपर से उनकी मांग बढ़ने से और बढ़ गई थी। इसलिए बहुत सारे गरीब तबके के लोग तो योजना का लाभ ही नहीं उठा पा रहे थे। योजना का पैसा तो काम पूरा होने के बाद मिलता था। पंचायत के जनरल हाऊस में विशेष काम के निमित्त शैल्फ बनाई जा रही थी। वार्ड मेंबर शैल्फ में हरेक परिवार का नाम दाल देता था, ताकि यदि बाद में उनका मन शैल्फ के सैंक्शनड काम करवाने का कर जाए, तो उन्हें अपने काम पहले से ही स्वीकृत/सेंक्शन होए हुए मिले। शैल्फें धड़ाधड़ स्वीकृत भी हो रही थीं। लेखक ने भी नरेगा के तहत एक वर्षाजल संग्रहण टैंक बनाया।
अपने स्वयं के द्वारा महसूस किए गए उपरोक्त व्यावहारिक बिन्दुओं पर प्रकाश डालते हुए लेखक ने इस पुस्तक/पुस्तक-भाग में अपनी आपबीती का वर्णन किया है। आशा है कि पुस्तक/पुस्तक-भाग पाठकों को रोचक लगेगी, और साथ में आवश्यक ज्ञान भी प्रदान करेगी।
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