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पंडित देवदत्त शास्त्री की लेखनी से प्रस्फुटित "आग्नेय तीर्थ हिंगलाज" के साथ एक असाधारण तीर्थयात्रा का अनुभव करें। यह कृति सन् १९४० में बलूचिस्तान (अविभाजित भारत) स्थित परम पवित्र हिंगलाज शक्तिपीठ की उनकी अविस्मरणीय, ‘आग्नेय’ यात्रा का जीवंत आख्यान है।
यह केवल एक यात्रा-वृत्तांत नहीं, अपितु अदम्य आस्था, मानवीय जिजीविषा और उस समय के रहस्यमयी, दुर्गम क्षेत्र की सांस्कृतिक-आध्यात्मिक धरोहर का एक अमूल्य दस्तावेज़ है। शास्त्री जी की ओजस्वी लेखनी आपको धधकते रेगिस्तान, चंद्रकूप के चमत्कृत कर देने वाले अनुष्ठानों और हिंगलाज गुफा की अलौकिक दिव्यता का प्रत्यक्ष अनुभव कराएगी।
यह पुनर्मुद्रित संस्करण, एक ऐतिहासिक और आध्यात्मिक निधि को पुनः प्रस्तुत करता है, जो उस दौर की सांप्रदायिक सौहार्द और गहनतम दार्शनिक अंतर्दृष्टियों को उजागर करता है। भारत की समृद्ध विरासत, चुनौतीपूर्ण आध्यात्मिक अन्वेषण और मानवीय आत्मा की अदम्य शक्ति से जुड़ने के अभिलाषियों के लिए एक अवश्य पठनीय कृति।
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