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पहले हम जीवन का वास्तविक मूल्य नहीं समझते थे । हमने इसकी आवश्यकता और महत्ता पर कभी ध्यान नहीं दिया था । उन्मत्त बनकर सुख भोग की मृगतृष्णा में भटक रहे थे, किन्तु निबिड़ अंधरकारमय, तमोमय मरुभूमि में उत्तप्त अग्नि के समुद्र में तैरते भटकते हुए हमने जीवन का मूल्य समझा । हरचन्द कोशिश करते हुए इसकी रक्षा में हम सन्नद्ध रहे । जीवन हमें स्वर्णिम दिखने लगा । किसी भी कीमत में इसे नष्ट होने से बचाने के लिए हम प्रतिबद्ध हो गये । शपथ ली, गन्दा गलीच पानी पिया, तूफान से टक्कर लिया, जीवन किस तरह जिया जा सकता है, इसका शिल्प हमें इसी तीर्थ यात्रा में मिला । हमने क्या पाया क्या खोया इसका लेखा - जोखा भूल गये । जो वर्तमान में घट रहा है, उसके प्रति सजग हो उठे । नियति की चुनौती को स्वीकार कर हम कराल काल के गाल से निकलने का साहसपूर्ण प्रयास कर रहे थे । यह रहा जीवन और मृत्यु का रहस्य जो हमें अनायास नहीं - बल्कि जीवन - युद्ध करते हुए मिला ।
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