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व्यक्तित्व का आधार और मानदण्ड हृदय होता है ।
ह्रदय की गहराई नाप कर व्यक्तित्व की पहचान होती है ।
मन और बुद्धि हृदय के अन्तस्तल तक पहुंचने में असमर्थ हुआ करते हैं ।
क्योंकि वे कल्पना, संकल्प - विकल्प और तर्क - वितर्क प्रधान होते है ।
हृदय ही हृदय को पहचान सकता है, मन और बुद्धि नहीं ।
हिमालय से भी अधिक हृदय की ऊँचाई और सागर से भी अधिक गहराई को संकल्प - विकल्पात्मक मन और तर्क - वितर्क प्रधान बुद्धि नहीं समझ सकती ।
दिल की आँखों से देखना, दिल के कानों से सुनना और दिल को दिल से मिला देना ही दूसरे को समझाना है ।
आदमी को आदमी समझने से पहले उस की आदमियता को समझना चाहिए ।
इस के बाद ही मन और बुद्धि के द्वारा बनाई गई - धारणा शत - प्रतिशत सही उतरती है ।
श्रुति भी यही कहती है -
आत्मा वाsरे द्रष्टव्यः श्रोतव्यः मन्तव्यः निशिध्यासितव्यः ।
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