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सत्य दोषी
भारत, 1934। एक स्वास्थ्य पत्रिका पर मुक़दमा चलता है — सिर्फ़ इसलिए कि उसने वो सच कहा, जिसे समाज सुनने से डरता है।
सत्यदोषी
एक साहसी मुक़दमे की काल्पनिक पुनर्कथा है, जो इतिहास के एक भूले अध्याय को जीवंत करती है।
डॉ. अद्वैत राव, एक निर्भीक वकील सुधारणा विचारधारा से प्रेरित हैं, समाज और अदालत से एक ही सवाल पूछते हैं —
“सच अश्लील है, या समाज का डर?”
यह उपन्यास केवल एक मुक़दमे की कहानी नहीं है,
यह सत्य और नैतिकता के बीच की लड़ाई है —
जहाँ शिक्षा को अपराध, और चुप्पी को मर्यादा माना गया।
सत्यदोषी उस आवाज़ का नाम है
जो ना तो झुकी, ना डरी — बस सुनी गई
Above average
A small novella , with historic case explained in fiction work great idea