Description
इतिहास ने जैनो और जैन धर्म के साथ पर्याप्त न्याय नहीं किया है। कई इन तथ्यों से अनभिज्ञ है। इसी कारण, जैन धर्म के विभिन्न अनजाने, अनदेखे, कम प्रचारित स्थलों के ऐतिहासिक, पुरातात्विक महत्व एवं शोधपरक तथ्यों को अनावृत कर जनमानस में प्रचारित, प्रसारित करने हेतु ये पुस्तक “जैन पुरा गौरव“ प्रस्तुत है |ये इस पुस्तक का प्रथम भाग है, जिसमें विभिन्न प्रांतों के 25 ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक महत्व के अनजाने जैन स्थलों के बारे में तथ्यपरक लिखा गया है, इस हेतु उपलब्ध पुरातत्व प्रमाणों,व देशी-विदेशी इतिहासकारों द्वारा लिखित पुस्तकों, शोध तथा आलेखों का अध्ययन करके एवं स्वयं के एवं मित्रों के अनुभवों का आलम्बन लिया गया है। इस पुस्तक के माध्यम से न केवल जैनों का तात्कालिक इतिहास, बल्कि, स्थल से जुड़े तथ्यों, जैनों की प्राचीन स्थिति, सोच, एवं परिस्थतियों पर भी प्रकाश पड़ेगा एवं प्राचीन जैन गौरव की अनुभूति कहीं न कहीं अवश्य होगी। इस पुस्तक के अन्य भागों पर भी कार्य अनवरत है, जो शीघ्र ही उपलब्ध होंगे एवं जैनों के प्राचीन गौरव की याद दिलाने में सफल रहेंगे।
मनीष जैन, जो कि पेशे से एक सॉफ्टवेयर कंपनी के सह संस्थापक एवं निदेशक है, उदयपुर - राजस्थान के निवासी है। इसके अतिरिक्त, ये जैनग्लोरी फाउंडेशन के संस्थापक भी है, जो कि भारत में जैन शोध तथा श्रुत, तीर्थ संरक्षण के क्षेत्र में कार्यरत है।
मनीष ने जैन धर्म की शिक्षा स्व. आचार्य श्री अजितसागर जी संघ, स्व. आचार्य श्री अभिनंदनसागर जी संघ, स्व. आचार्य श्री विपुलसागर जी, गणिनी आर्यिका ज्ञानमती माताजी, आचार्य श्री पद्मनन्दि जी संघ, तथा आचार्य श्री कनकनंदी जी संघ से प्राप्त की। आचार्य श्री कनकनंदी जी के चरणों में रहते हुए इन्होने लगभग 6 माह तक तत्वार्थ सूत्र इत्यादि मुख्य सिद्वांत ग्रंथों, संस्कृत, व्याकरण, न्याय और ज्योतिष का अध्ययन किया। साथ ही आचार्य श्री के लिए लेखन कार्य, प्रूफ रीडिंग, शास्त्र टीका सहयोग इत्यादि कार्य किया। बस तब से ही धर्म, तीर्थ, श्रुत और समाज की सेवा का उद्देश्य पनपा और उस पथ पर ये निरंतर गतिमान है। अब तक इन्होनें अनेकों धार्मिक, वैज्ञानिक एवं विद्वत संगोष्ठियों में भाग लिया एवं अन्य अनेकों धार्मिक, सामाजिक और शैक्षिक कार्यक्रमों हेतु कार्य किया। 1990 से लेकर अब तक इन्होने पुरातत्व, ऐतिहासिक एवं धार्मिक महत्व के हजारों जैन स्थानों की यात्रा की है एवं कई अनजान पुरातन स्थलों के बारे में जानकारी जुटाई है, जिसे, विभिन्न जैन पत्र पत्रिकाओं, वेबसाइट और सोशल मीडिया के माध्यम से प्रकाशित करते रहते है। ये “प्राचीन तीर्थ जीर्णाद्धार“ हेतु नियमित लिखते है, इसके अतिरिक्त, तीर्थ क्षेत्र कमिटी की “जैन तीर्थ वंदना“ पत्रिका में भी इनके लेख निरंतर प्रकाशित हुए।
मनीष विभिन्न जैन संगठनों/समूहों से कार्यकर्ता व मार्गदर्शक के रूप में जुड़े हुए है, और निरंतर धर्म प्रभावना, समाज सेवा कर रहे है। 2009 से ही अनेकों सोशल मीडिया पेज तथा समूह के प्रबंधक है एवं देश विदेश के इतिहास व पुरातत्व के कई विद्वानों से जुड़े हुए है। जैन अल्पसंख्यक आंदोलन के दौरान मनीष विश्व जैन संगठन के राजस्थान प्रभारी बनकर सक्रिय रूप से कार्य करते रहे। इसके अलावा, इन्होने, विकिपीडिया पर कई गलत जैन सामग्री को सही किया है, गूगल मैप पर 1200 से अधिक जैन स्थानों को प्रकाशित कराया है। ये जैन पत्रकार संघ के आजीवन सदस्य बनकर जैन पत्रकारिता के क्षेत्र में भी अपना महत्वपूर्ण योगदान दे रहे है। पिछले 12 वर्षों से जैन धरोहर के संरक्षण के कार्यों में व्यक्तिगत और समूहगत, स्वयंसेवी कार्यों में भी संलग्न रहे है। इस दौरान, तमिलनाडु, कर्नाटक, तेलंगाना और महाराष्ट्र के कुछ स्थानों के जीर्णोद्धार में इनका व्यक्तिगत, और समूहगत योगदान भी रहा है, जो अनवरत जारी है। वर्तमान में भी गुलबर्गा के आसपास एवं तेलंगाना के स्थलों के संरक्षण के लिए स्थानीय व अजैन लोगों के साथ प्रयत्नरत है। इस हेतु ये जैनग्लोरी फाउंडेशन, जैन संघ पुणे, मदुरै जैन हेरिटेज संघ, इत्यादि अनेकों संस्थाओं से जुड़े हुए है। इतिहास, पुरातत्व अध्ययन, धर्म/दर्शन/विज्ञानं का तुलनात्मक अध्ययन, जैन यात्रा और पुरातत्व खोज इनके मुख्य अभिरुचि के निरंतर कार्य है।