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देर तक हाल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंजता रहा सेठानी जी ने चेतन के कंधे पर सिर रक्खा हुआ था, फोटोग्राफर फोटो खींच रहे थे , अभी दिल के भीतर की फोटो लेने वाला कैमरा नहीं बना है , चेतन के कंधे पर कोई था और चेतन इमोशनली किसी और कंधे पर टिका था अपनी बची हुई जिंदगी जीने के लिए। वह अपनी मौत के बाद भी जिंदा थी , “फीनिक्स” की तरह जो राख़ से भी पैदा हो जाता है । चेतन को भरोसा था कि जो कुछ उस ने देखा है , जिस चिता को उसने जलाया है सुबह होते होते उस राख़ से वह फिर पैदा हो कर उसके आफिस में आ जाएगी काम करने । यही तो उसने कहा था , हाँ यही तो उसने कहा था, कि हम सब यहा जीने वाले इस बस्ती में रहने वाले “फीनिक्स” हैं । हमें पता है कि यदि हमारी राख़ भी बची तो सुबह तक हम उसमें से उठ खड़े होंगे ।
उसे अहसास था कि राख़ भी किसी को जिंदगी दे सकती है । किसी और को भले न सही , उसे तो वह प्रेम का अहसास करा गई थी , वही प्रेम जिस प्रेम के अहसास को पा कर वह अर्थहीन संस्कार से बाहर निकाल कर जी उठा था ।उसे भरोसा था वह आएगी , अपनी राख़ से निकाल कर , जरूर आएगी---
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