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कवि महेन्द्र सिंह बिलोटिया, हरियाणा के चरखी दादरी ज़िले के ग्राम इमलोटा के प्रतिष्ठित साहित्यकार हैं, जिनका जन्म 1 जनवरी 1954 को एक साधारण परिवार में हुआ। पिता श्री केहर सिंह और माता श्रीमती धनकौर के संस्कारों से समृद्ध, आपने नौवीं तक की औपचारिक शिक्षा के बावजूद ज्ञान, प्रयोग और अनुभव के बल पर हिंदी एवं हरियाणवी साहित्य में एक विशिष्ट स्थान बनाया।
लेखन यात्रा 1980 में प्रारंभ हुई और जल्द ही आपकी काव्यधारा ने आकाशवाणी, दूरदर्शन तथा देशभर के मंचों पर अमिट छाप छोड़ी। आपकी लेखन शैली में संवेदना, यथार्थ, लोक-संस्कृति और सामाजिक सरोकारों का सशक्त समन्वय दिखाई देता है।
आपकी प्रकाशित पुस्तकों में—
कब तक भीगेगी नारी, बाल ख्याल काव्य ताल, दर्पण दर्शन, लोक झोंक, लोक धुन तथा कहानी संग्रह चोट शामिल हैं। आपकी कृति बाल ख्याल काव्य ताल को 2007 में हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा अनुदान प्राप्त हुआ, जो आपकी साहित्यिक पहचान को और प्रबल करता है।
अपने साहित्यिक योगदान के लिए आपको उपायुक्त भिवानी, अतिरिक्त उपायुक्त भिवानी, उपायुक्त रेवाड़ी, शिक्षा अधिकारी झज्जर, तथा अनेक राष्ट्रीय एवं प्रतिष्ठित साहित्यिक संस्थाओं द्वारा सम्मान मिला है।
आपको—
• विक्की वर्ल्ड रिकॉर्ड जर्नल
• शैली साहित्य मंच रोहतक
• अनिल साहित्य सम्मान (उत्तरप्रदेश)
• काव्य सौरभ सम्मान
• बाल्मिक शोध पीठ, MDU रोहतक
• राष्ट्रीय कवि संगम
• सर्व शिक्षा अभियान, पीरागढ़ी दिल्ली
• अखिल भारतीय साहित्य परिषद नारनौल
• यादव महासभा गुरुग्राम
तथा अनेक संस्थानों से विशिष्ट सम्मान प्राप्त हुए हैं।
आपकी दो रचनाएँ आर्मी जाट रेजिमेंट के दो सौ वर्ष के ऐतिहासिक उत्सव पर प्रकाशित स्मृति–ग्रंथ में भी स्थान पा चुकी हैं, जो आपके साहित्यिक गौरव को नई ऊँचाइयाँ प्रदान करता है।
ऑनलाइन और ऑफलाइन मिलाकर आपको लगभग 400 से अधिक प्रशंसा सम्मान प्राप्त हो चुके हैं, जो आपकी लोकप्रियता और जनविश्वास का प्रमाण हैं।
हरियाणवी लोक-संस्कृति, समाज और मानवीय मूल्यों को अपनी लेखनी के माध्यम से नई पीढ़ी तक पहुँचाना ही आपका ध्येय है।
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