You can access the distribution details by navigating to My Print Books(POD) > Distribution
ढाई आखर ,काल्पनिक वास्तिवकता पर आधारित ,एक सामान्य ,लगभग शून्य आत्मविश्वास वाले इंजीनियरिंग छात्र साकेत के कॉलेज की सबसे खूबसूरत लड़की से इश्क के सफ़र की कहानी है ।इश्क के सफ़र की मंजिल ,किताबों के पन्नों में गुम होकर तलाशता है साकेत। चम्पू ,चिरकुट जैसे शीर्षकों के बोझ तले दबे साकेत का कूल,और क्यूट में अवतरण होने का सफ़र है,उसका ये इश्क ! किताबों से पूरा इश्क करने वाले साकेत को सृष्टि से सफ़र के पहले मोड़ पर ही इश्क हो गया,पूरा या आधा उसको खुद खबर नहीं, आधे या पूरे की परिभाषा से अलग,ये इश्क साकेत को सृष्टि के संसार में बहुत दूर ले गया। साकेत के लिए इश्क का सफ़र ही उसकी मंजिल है , सृष्टि उसके इस सफ़र में कहाँ तक साथ है, किसी मोड़ तक ,मंजिल तक,या वो सफ़र में है ही नहीं!
Ek baar shuru Karne ke baad Jab tak book poori nahi hui tab tak chain nahi Mila. Maine life mein pehli baar kisi book ko itni jaldi or ek saath padha hai...
the writing style is fabulous , character description is brilliant.once u start with immediately u find connected with Saket and Srashti, either way whoever have any time entered into the college cant escape feeling all emotions sailing through the words of book.
The humorous approach of the writer with all hearty emotions described through the chosen gem words is simply awsm.
"जलज अधर विचरित मुस्कान ,ध्रुवनन्दा सी कुसुम कलेवर " the line i took snapshot of...
I will request all to pl get this book and read it with sole heart. Dil ko chhoo jane wali baatein hain.....
plzz go grab a copy and be ready to travel with timemachine....
It is a book you simply cannot put down once you start. The characters are very real and speak the language used in day to day life. However, the passions and emotions that describe the main character Saket are so heartfelt that the it seems that you instantly connect to the story and want to know how the story goes. The narration is smooth and the story simply flows till the end.
The book will be appreciated by those who love good hindi fiction and also those who love romantic fiction.
Being a english fiction reader always for the fiRST tym i read dis book in hindi in which the writing style is fabulous ,the words associated and some of poetic lines are just truly amazing while reading this book i felt so connected wd da flow of story not evn being a character of da story of book it still kept me attached throughout lyk all dat happened in my lyf.
Although all characters are fabulous in it but Imran is the one who teaches us da real meaning of friendship and saket teaches about the eternal true love in today's world.
The people who believe in love must read this wonderful story of saket's eternal love with shristi.
Re: ढाई आखर
ढाई आखर
ढाई आखर, सबके लिये ही, अपने अलग अर्थ लिये। सबके लिये जीवन के एक पड़ाव पर, एक अनिवार्य अनुभव, एक स्पष्ट अनुभव। संभवतः उस समय तो नहीं, जिस समय हम ढाई आखर में सिमटे होते हैं, परन्तु वह कालखण्ड बीतने के पश्चात ढाई आखर में डूबते उतराते जीवन की व्यग्रता समझ आती है। हो सकता है कि ढाई आखर का कालखण्ड वर्तमान परिप्रेक्ष्य में बचकाना सा लगे, हो सकता है आप वह सब सोच कर मुस्करा दें, हो सकता है कि वर्तमान पर उसका कुछ भी प्रभाव शेष न हो। पर जब कभी आप अपने आत्मीय क्षणों में बैठते और विचारते होंगे, उस कालखण्ड के भावों की पवित्रता, तीव्रता और समग्रता आपको अचम्भित करती होगी।
बीती यादों को हृदय से चिपकाये लोग भले ही व्यवहारकुशल न माने जायें, पर भावों का मान रखना भी जीवन्तता और जीवटता के संकेत हैं। जो भाव जीवन पर छाप न छोड़ पाया, वह भाव तो निर्बल ही हार जायेगा। और जब बीते भाव हारने लगते हैं तो जीवन का वर्तमान से विश्वास उठ जाता है। जो बीत गया, उसे जाने देना, यह भाव जीवन को निश्चय ही नवीन बनाये रखता है। बीते भाव जब तक जीवन में अपनी तार्किक निष्पत्ति नहीं पाते हैं, अतृप्त रहते हैं। जब प्रकृति ने हर क्षण का मोल चुकाने की व्यवस्था कर रखी हो तो ढाई आखर का सान्ध्र समय बिना आड़ोलित किये कैसे निकल जायेगा भला?
कुछ व्यक्तित्वों में गोपनीयता का भाव बड़ा गहरा और लम्बे समय तक रहता है। पर यह भी निर्विवादित सत्य है कि गोपनीयता का भाव मन की शान्ति नहीं देता है। अच्छा ही हो कि उसे शीघ्रातिशीघ्र और सम्यक रूप से समझ कर व्यक्त कर दिया जाये। मानवेन्द्र ने इसी व्यग्रता को अपनी पुस्तक 'ढाई आखर' के रूप में व्यक्त कर दिया है।
मध्य में मानवेन्द्र
मानवेन्द्र मेरे सहकर्मी हैं, वाराणसी मंडल की संचार और सिग्नल व्यवस्था के लिये पूर्ण रूप से उत्तरदायी। तकनीकी रूप से जितने कुशल इलेक्ट्रॅानिक्स इन्जीनियर हैं, प्रशासक के रूप में उतने ही कुशल कार्य कराने वाले भी। अभिव्यक्ति की विमा भी उतनी ही विकसित मिलेगी, यह तथ्य उनकी पुस्तक पढ़ने के बाद ही पता चला। यद्यपि मानवेन्द्र इस पुस्तक को आत्मकथा नहीं मानते हैं, परन्तु जिस सहजता और गहनता से वह कथाक्रम में आगे बढ़ते हैं, ऐसा लगता है कि सब उनके भीतर छिपा हुआ था, वर्षों से बाहर आने को आतुर, शब्दों के रूप में।
कहानी साकेत की है, सीधा साधा, पढ़ने लिखने वाला साकेत, अध्ययन में श्रमरत और प्रतियोगी परीक्षाओं के कितने भी बड़े व्यवधान पार करने में सक्षम। इन्जीनियरिंग की मोटी पुस्तकों को सहज समझ सकने वाला साकेत ढाई आखर में उलझ जाता है। प्रोफेसरगण अपना सारा ज्ञान उड़ेल देने को आतुर पर साकेत का विश्व ढाई आखर में सिमटा हुआ था, या कहें कि ढाई आखर ने उसे इतना भर रखा था कि उसे कुछ और ग्रहण करने का मन ही नहीं। अपने उस भाव में सिमटा इतना कि भाव भी विधिवत व्यक्त करने में बाधित। जैसे जैसे वर्ष बीतते हैं, मन सुलझने के स्थान पर और उलझता जाता है, नित निष्कर्षों की आस में, नित भावों के संस्पर्श की प्यास में।
स्थान छूट जाता है पर ध्यान नहीं छूटता है, ढाई आखर का आधार नहीं छूटता है। अधर पड़े जीवन में व्यग्रतापूर्ण आस सतत बनी ही रहती है। व्यवहार में सहज पर मन में असहज, कुछ ऐसा ही संपर्क बना रहता है। मस्तिष्क के क्षेत्र में सब लब्ध पर हृदयक्षेत्र में स्तब्ध, साकेत को समय तौलता रहता है, हर दिन, जब भी अपने आप में उतरता है।
एकान्त का निर्वात कभी छिपता नहीं है, औरों को दिख ही जाता है। उसे छिपाने के प्रयास में साकेत उसे और विस्तारित करता रहा, कभी हास्य से, कभी कठोरता से। साकेत बाधित रहे, पर और तो बाधित नहीं हैं। आईईएस के प्रशिक्षण के समय ऐसा ही एक घटनाक्रम खुलता है। लुप्तप्राय औऱ लब्धप्राय के बीच का द्वन्द्व। तन्तु खिंचते हैं, उलझते हैं, टूटते हैं। पता नहीं साकेत क्या निर्णय लेगा और किस आधार पर लेगा?
सब साकेत जैसे हो न पायें, सोच न पायें, पर उस प्रक्रिया से सब होकर जाते हैं। एक साकेत ने अपनी कहानी सुना दी, आप पढ़िये और अपने साकेत को भी पढ़ाइये। हो सके तो उसे स्वयं को व्यक्त करने के लिये प्रेरित भी कीजिए