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2024 मे स्व-प्रकाशित हमर पहिल पोथी “उफाँट हम “जे कि एकटा गजल संग्रह छल, पूर्णतया बहरयुक्त छल। एकहक टा शेर मात्राक नियमानुसार छल, छंदबद्ध छल। अनुशासित पाँतिमे भावकेँ बैसबैएमे हमरा एकटा विशेष आनंदक अनुभव भेल छल।
आय, करीब-करीब एक वर्षक उपरान्त, हमर दोसर पोथी “उजासक आसमे” जे कि एकटा कविता संग्रह अछि, स्व-प्रकाशित भ’ रहल अछि। एहि संग्रहक सभ कविता छंदमुक्त अछि। छंदयुक्तसँ छंदमुक्त धरि हमर यात्रा रोमांचकारी रहल। पहिलमे भाव अनुशासित ढंगसँ सानल छल, जबकि दोसरमे भावक टघार अपन धारा अनुसार बहबाक लेल स्वतंत्र अछि।
एहि पोथीक कवितासभक कथ्य कतहु-न- कतहु आत्मावलोकन, स्वबोध आ दार्शनिकताक डोरीमे लटपटाओल अछि। पाठक सभकेँ एहि कवितासभक माध्यमसँ स्वयंसँ संवाद करबाक आ स्वयंकेँ समझबाक अवसर आ प्रेरणा भेटत। मानव जीवनक विविध महत्वपूर्ण आयाम जेना कि उत्सव, मृत्यु, एकाकीपन, नैतिक मूल्य, भौतिकताक प्रति अनुराग, संबंध इत्यादि सभकेँ छुबैत, ई पोथी अहाँकेँ जीवनक प्रति एकटा नव दृष्टिकोण देखेबाक अवसर प्रदान करत। हमरा विश्वास अछि जे ई पोथीक कविता सभ सदिखन सम-सामयिक आ सार्थक बनल रहत।
कवितासभमे प्रतीक आ बिंबक समुचित प्रयोग कएल गेल अछि, जे प्रकृति आ मानव दुनूसँ उधार लेल गेल अछि। कोशिश कएल गेल अछि जे दार्शनिक पक्षकेँ समग्रतामे उतारल जाए। कविता सभक गहराई अहाँकेँ सोचबामे विवश क’ देत। कविताक शीर्षकसभ प्रथमदृष्टया साधारण लगैत अछि मुदा कथ्यक आ विषयक जटिलताकेँ समेटैत अपनामे गहीर अर्थ समाहित कएने अछि । शैलीमे सेहो किछ नव प्रयोग देखबामे भेटत।
कवितासभमे संवेदना, क्षमा, प्रेम, भ्रम, द्वन्द्व, अहिंसा जेकाँ कठिन तत्वसभक जड़ि धरि पहुँचेबाक प्रयास कएल गेल अछि। किछ कविता अभिधा, किछ लक्षणा, आ किछ व्यंजनामे रंगल अछि। अधिकतर कविता अपन भाव आ अर्थमे गहीर भेटत।
एहि पोथीक एक मात्र उद्देश्य अछि — मनुष्यता केँ पक्षमे ठाढ़ होएबाक साहसक संचार। अन्हार सदिखन रहत, मुदा उजासक आस नहि छोड़बाक चाही। मनुष्यक जीवन एहि आसक यात्रा अछि। अपनाकेँ बुझबाक यात्रा, मनुष्यक “मनुष्य” बनबाक यात्रा।
जखन कखनहुँ अहाँ लक्ष्यविहीन होयब, खसि पड़ब, अवसाद दिस बढ़ लागब,-ई पोथीक कवितासभ अहाँके शांति देत, नव आयाम देत आ चिंतन करबाक अवसर देत। सपना देखबाक लेल आ समग्रतामे सोचबाक लेल नव साहस देत। दोसरक त्यागक भावना के प्रति सम्मानक दृष्टि आ ओकरा मान्य करबाक क्षमता प्रदान करत। मनुष्य बनबाक यात्रामे, ई पोथी एकटा प्रकाशस्रोत जकाँ सदिखन बरैत रहत आ अहाँकेँ दिग्भ्रमित होयसँ बचेबामे सहायक सिद्ध होयत।
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