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ब्रह्मभूत की एकादसी

मुकेश मुकुंद माधव
Type: Print Book
Genre: Literature & Fiction
Language: Hindi
Price: ₹227 + shipping
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Description

पुस्तक के बारें में अति विस्तार से अवगत करने की आवश्यकता नहीं है। यह पुस्तक कुछ चुनिंदा कहानियों का संकलन है चूँकि कहानियां समाज और साहित्य की अमूल्य धरोहर समझी जाती है जो समय और स्थान को न केवल परिभाषित करती है अपितु उसे एक नए मोड़ पर पहुंचाकर एक नए रंग में भविष्य की स्वरूपलेखा का निर्माण भी करती है। कहानियां अजीबों - गरीब हो सकती है किन्तु उन सभी का उद्श्य पाठक को परिमल मनोरंजन प्रदान करने के साथ-साथ उसकी जिज्ञासा जो ज्ञान के प्रति रही है उस अग्नि को भी शांत करने के साथ-साथ उसे प्रगाढ़ता एवं गंभीरता प्रदान करना भी रहा है। इस पुस्तक में कुछ ऐसी ही नवीन, नव-प्रकृति की एवं अतीत में झांकती सी कहानियों का संग्रह करके पाठको की प्रबुद्धता के समक्ष परखने के लिए उपस्थित किया है। बहुत अधिक गहराई में भी न जाते हुए, कुछ ही अल्फाजों में बता देना अर्थपूर्ण होगा कि इस पुस्तक की कहानियां पाठको को स्वयं के प्रतिबिम्ब से परिचय करवाने के माध्यम के रूप में उभरने के प्रयास के रूप में प्रकट हुयी है जो निसंदेह आज के दौर के साहित्य को हमारे पूर्वजों की लेखनी के संदर्भ में एक नयी दिशा देने का महत्वपूर्ण प्रयास करती है।

About the Author

लेखक के परिचय की अधिक आवश्यकता नहीं है हालाँकि फिर भी पाठक के लिए लेखक का सामान्य परिचय करवा देना अधिक उचित जान पड़ता है। लेखक राजस्थान के चूरू जिले के गाँव देपालसर के मूल निवासी है जिन्हे बचपन से तो नहीं कहा जा सकता किन्तु एक वक्त के बाद साहित्य से खासा लगाव हो गया था। न जाने कितने ही नए पुराने लेखकों के साहित्य संग्रह को पढ़कर उन्हें नए व पुराने दौर के साहित्य की समझ में अंतर् महसूस होने लगा और इसी अंतर् को पाटने के लिए उन्होंने लेखनी की ओर एक छोटा-सा कदम रखा है। यद्यपि लेखक एक विद्यार्थी है जिनके शैक्षिक विषय के रूप में साहित्य से जुड़ी चीज़ें एक वक्त तक ही रही जिसके पश्चात इनके शैक्षिक विषय के रूप में साहित्य दूर-दूर तक भी नहीं था। यह मूलतः कम्यूटर साइंस के विद्यार्थी है जो देखा जाए तो इनकी नजर में एक प्रकार का साहित्य ही है। किन्तु हकीकत यह है कि कंप्यूटर साइंस और मूल साहित्य की धाराएं एक-दूसरे के विरुद्ध तो नहीं कही जा सकती है किन्तु साथ-साथ भी नहीं बह रही है। हालाँकि लेखक बचपन से ही कहानियों के शौकीन रहे है, गर्मी की छुटियों में जब ननिहाल जाते तो नाना-नानी की कहानियों से सराबोर होने का आनंद लेते। वही कहानियां धीरे-धीरे साहित्य की मुख्या धारा की ओर उन्हें आकर्षित करने लगी जिससे नव साहित्य सर्जन के लिए एक मजबूत और गहरी आधारशिला रची जाने लगी। यह सबकुछ प्रकृत प्रदत है इसमें निसंदेह कोई संदेह नहीं है किन्तु लेखक की अपनी मेहनत ने इस प्रकृति प्रदत गुण को मुखर रूप देने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है।

Book Details

Publisher: Mukesh Mukund Madhav
Number of Pages: 207
Dimensions: 5"x8"
Interior Pages: B&W
Binding: Paperback (Perfect Binding)
Availability: In Stock (Print on Demand)

Ratings & Reviews

ब्रह्मभूत की एकादसी

ब्रह्मभूत की एकादसी

(5.00 out of 5)

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1 Customer Review

Showing 1 out of 1
Mukesh Mukund Madhav 3 years, 7 months ago

Great Book I have ever read

Thank you so much for writing this book because it has a lot of knowledgeable stories that never read before.

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