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हम चाहें या न चाहें मानव प्रकृति के अनुरूप समय समय पर हम भूत, भविष्य और वर्तमान तीनों में ही जीते हैं. खोए हुए लम्हों का पासवर्ड अपनी ही जिंदगी के इन तमाम हिस्सों को ढूँढने की एक कोशिश है जो जीवन में कविता के माध्यम से अनवरत चलती रहती है. जीवन का प्रवाह कहीं स्थिर नहीं होता भले ही जीवन सीमित समय और सीमित अर्थों में हो. जीवन का प्रवाह ही कविता है भले ही कोई कितना ही कठोर हृदय हो.
इंसानी जिंदगी मशीन दिख तो सकती है मशीन हो नहीं सकती. यहाँ तक कि मेटावर्स और ए आई इंटेलीजेंट होने की ओर अग्रसर हैं अर्थात् मशीन का विकास भी किसी संवेदना तन्तु की खोज में है अपनी नई पीढ़ी को पाने के लिए ऐसे में शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति होगा जो अपनी जिंदगी में अपने खोए हुए लम्हों का पासवर्ड न ढूँढना चाहे. हाँ यदि मेरी यह पुस्तक किसी को भी उसके जीवन में खो चुके इमोशंस का पासवर्ड बता सकने में मददगार हुई तो निश्चित रूप से मुझे प्रतीत होगा कि मैं अपने इस छोटे से जीवन में कोई छोटा सा काम कर सका हूँ , एक ऐसा काम जो इंसान को मशीन हो जाने से बचा ले.
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