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व्यंग्य विडंबना और सवाल
मुरली मनोहर श्रीवास्तव की कविताएं मूलतः स्वान्त: सुखाय की कविताएं हैं। उनकी कविताओं में भावुक उच्छ्वास है और प्रश्नाकुलता भी। उनका कवि हृदय समकालीन जीवन की कठोरताओं से टकराते हुए बार-बार प्रश्नाकुल होता है, बार-बार उदास होता है। वह यह महसूस करता है कि उम्र के जिस मोड़ पर मोह-माया से मुक्त होने की उम्मीद की जाती है, वह उम्र भी वस्तुतः उतनी ही मोहासक्त होती है, और ईश्वर की खोज अपने अमरत्व की तलाश के लिए ज्यादा है, निर्वाण या मुक्ति के लिए कम। यहां कवि जाने-अनजाने समकालीन जीवन की एक बड़ी विडंबना से हमारा साक्षात्कार कराते हैं। अपनी कविताओं में कई जगह कवि ने बेहद मारक बिंबों के जरिये हमारे जीवन यथार्थ को समझाया है। उदाहरण के लिए, मौत कविता में वह कहते हैं, पूरा जीवन हमारा शरीर सजदे में इस तरह झुक रहा कि वही मृत्यु से कम नहीं था, ऐसे में, मौत होने पर शायद ही कोई चौंके। अपनी एक कविता में वह कहते हैं कि लोग आजकल प्रॉपर्टी और बैंक बैलेंस की शक्ल में नजर आते हैं, वे सोने-चांदी के चलते-फिरते बुत की तरह लगते हैं। और ऐसे में, एक अदद आदमी की खोज कवि के लिए बेहद कठिन हो जाती है। यहां व्यंग्य और विडंबना है। मुरली मनोहर श्रीवास्तव की कविताओं में ईश्वर बहुत बार आते हैं। यह ईश्वर या तो प्रार्थना की शक्ल में हैं या फिर समकालीन संदर्भों में उनकी भूमिका है। ऐसी जगहों में कवि का व्यंग्यकार रूप प्रभावी होता है, जैसे समस्या कविता में। यहां प्रेम है, जो इहलौकिक और पारलौकिक, दोनों है। ऐसी कविताओं में कहीं छायावाद का रूप दिखता है, तो कहीं गीतों की झलक मिलती है। कवि ने
अनेक जगह अपनी लघुता का परिचय दिया है।
चूंकि इन पंक्तियों के लेखक को कवि के व्यंग्यों से गुजरने का अनुभव ज्यादा है, इसलिए यह कहा जा सकता है कि उनकी रचनाओं में व्याप्त जटिलताएं कई बार सायास होती हैं। कविता समझने के बजाय अनुभव करने की चीज अधिक है। उसका वास्ता हृदय से है, मस्तिष्क से नहीं। हालांकि कवि की अनुभूतिजन्य ईमानदारी में कोई संदेह नहीं है। लेकिन कविताओं से यथासंभव सहज होने की उम्मीद की जाती है। कविता की क्लिष्टता उसकी अभिव्यक्ति में बाधक बनती है। कविता को अनायास होना चाहिए, सायास नहीं। चूंकि यह मुरली मनोरहर श्रीवास्तव का पहला ही कविता संग्रह है, ऐसे में, यह उम्मीद करनी चाहिए कि वह निरंतर अपने को मांजते हुए कविता की नई ऊंचाइयां छुएंगे।
कल्लोल चक्रवर्ती
संपादकीय मण्डल
अमर उजाला
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