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गुरू गूगल दोऊ खड़े

मुरली श्रीवास्तव
Type: Print Book
Genre: Humor
Language: Hindi
Price: ₹250 + shipping
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Description

व्यंग्य रचनाएँ हमारे भीतर गुदगुदी ही पैदा नहीं करतीं बल्कि हमें उन सामाजिक वास्तविकताओं के आमने-सामने भी ला खड़ा करती हैं जिनसे हम आए दिन बावस्ता होते हैं। व्यंग्य लेखन समाज की पीड़ा को अभिव्यक्ति भी देता है और समाज को उद्वेलित करके उसे झिंझोड़ता भी है। असली व्यंग्य वही है जो अंतस को गहरे तक स्पर्श करे।
हिन्दी साहित्य में व्यंग्य की एक पुरानी परिपाटी रही है और संत साहित्य में भी व्यंग्य का पुट देखने को मिलता है। “कांकर पाथर जोरि कै मस्जिद लई चुनाय, ता चढ़ि मुल्ला बांगि दे क्या बहरा हुआ खुदाय”,
संत साहित्य में कबीर की व्यंग्य क्षमता का प्रमाण है। स्वतंत्रता प्राप्ति से पहले और बाद में भी हमारे देश में प्रचुर व्यंग्य लेखन हुआ है। हरिशंकर परसाई की रचनाएँ आज़ाद भारत का सृजनात्मक इतिहास कही जाती हैं। व्यंग्य को आज सामाजिक सर्तकता के हथियार के अलावा समाज के आक्रोश की अभिव्यक्ति के रूप में भी देखा जा रहा है।
इस लिहाज़ से देखा जाए तो जाने माने व्यंग्यकार मुरली श्रीवास्तव का व्यंग्य संग्रह- “गुरु गूगल दोऊ खड़े" गज़ब की मारक क्षमता से लैस है। इसकी अधिकतर व्यंग्य रचनाएँ अपने लक्ष्य को भेदने में सक्षम मिसाईलें हैं, जिनके प्रहार से बच पाना नामुमकिन है। मुरली श्रीवास्तव ने एक कथाकार के रूप में
तो अपनी पुख़्ता पहचान बनाई ही है, लेकिन व्यंग्य को अपना औज़ार बनाकर कई चुटीली, नुकीली व भ्रष्ट तंत्र को तिलमिलाती रचनाएँ भी पाठकों को दी हैं। उत्तम अभिव्यंजना शैली और उपयुक्त विषयवस्तु के सामंजस्य के चलते "गुरु गूगल दोऊ खड़े" एक पठनीय व संग्रहणीय व्यंग्य संग्रह है । इस संग्रह की ख़ास बात यह भी है कि व्यंग्यकार की सामाजिक दृष्टि साफ़ है। जितनी विविधता उनके विषयों में दिखाई देती है, उतनी ही उनके प्रस्तुतीकरण में भी झलकती है। लेखक ने सामाजिक सरोकारों को सदैव प्राथमिकता दी है। वैसे भी सामाजिक सरोकार का दूसरा नाम ही प्रतिबद्धता है और यह प्रतिबद्धता लेखक की क़लम में झलकती है। इस संग्रह के व्यंग्य लेखों से गुज़रते हुए शिल्प के अनेक प्रयोग भी देखने को मिलते हैं।
व्यंग्य रचना- जीवन में फ़ेसबुकि या लफड़े हो या ऑफ़िस रस, चिंता पर चिंतन हो या चक्कर स्टेटस का,मुरली श्रीवास्तव नए शिल्प के ज़रिए अपने व्यंग्य लेखन को धार देते और पाठकों को गुदगुदाते दिखते हैं।
एक व्यंग्यकार को उपदेशक व समझौतावादी नहीं बल्कि जीवन मूल्यों के प्रति ईमानदार व विचारों से क्रांति कारी होना चाहिए और ऐसे व्यंग्य लिखने चाहिएँ जिससे आम आदमी की पीड़ा को शब्द मिलें और भ्रष्ट तंत्र तिलमिला उठे। इस व्यंग्य संग्रह के ज़रिए व्यंग्यकार वर्तमान से मुठभेड़ करता हुआ दिखाई देता है। संग्रह की रचनाएँ फूहड़ हास्य व हल्के-फुल्के मनोरंजन की परंपरागत परिधि से हटकर देशकाल और समाज के व्यापक प्रश्नों से जोड़ती दिखती हैं। मुरली श्रीवास्तव एक ऐसे व्यंग्यकार के तौर पर सामने आए हैं जिन्होंने व्यवस्था की विद्रूपताओं पर निशाना साधने के साथ-साथ स्वयं पर ही व्यंगात्मक प्रहार करने से भी कोई परहेज़ नहीं कि या। इसी स्वनिंदा या स्वयं पर हँस सकने की क्षमता ने उनके लेखन में धार पैदा की है।
उन्होंने विसंगतियों के बीच पिस रहे आम आदमी की दुख-दर्द को जीवंतता के साथ अपनी रचनाओं में अभिव्यक्ति दी है। साथ ही पाठकों को किसी भी घटना को देखने का एक नया नज़रिया दिया है। उनकी निगाह स्थानीय से लेकर अंतरराष्ट्रीय घटनाओं पर रहती है। "और भी ग़म है ज़माने में इलेक्शन के सिवा" , "कल्याणकारी योजनाओं के निवाले" इस संग्रह के ऐसे व्यंग्य हैं, जिनमें स्थानीय हुक्मरानों से लेकर ब्यूरोक्रेट तक उनके कटाक्ष के शिकार बने हैं। इस संग्रह की कई रचनाओं में बहुत ही सूक्ष्म प्रतीक छिपे हैं जिन्हें पाठक सहज ही पकड़ सकते हैं। मुरली श्रीवास्तव ने इस संग्रह की व्यंग्य रचनाओं में
नाटकीय घटनाक्रमों के बीच पारिवारिक, सामाजिक, प्रशासनिक, राजनैतिक आदि अनेक विसंगतियों की पड़ताल की है।
यह संग्रह, व्यंग्य लेखन के क्षेत्र में उनकी लंबी यात्रा के बारे भी पूर्णतया आश्वस्त करता है, इसमें कोई दो राय नहीं।

- गुरमीत बेदी,
उपनिदेशक
हि . प्र. प्रेस सम्पर्क कार्यालय,
हिमाचल भवन, सेक्टर 28-बी,
चंडीगढ़

About the Author

लेखक का परिचय

नाम: मुरली मनोहर श्रीवास्तव
पिता का नाम: श्री विजय कुमार श्रीवास्तव ( लब्धप्रतिष्ठ साहित्यकार इलाहाबाद)
जन्मस्थान: इलाहाबाद
अध्ययन : बी.ई. मैकेनिकल इंजीनियरिंग (जामिया मिलिया इस्लामिया नई दिल्ली से)
प्रकाशन : नवभारत टाइम्स, दैनिक जागरण, हिंदुस्तान दैनिक, अमर उजाला, राष्ट्रीय सहारा, नई
दुनिया, मेरे सहेली, जागरण सखी सहित विभिन्न दैनिक व पत्रिका में एक हज़ार से अधिक रचनाएँ
प्रकाशित तथा निरंतर प्रकाशन जारी है।
अभी तक लिखी कहानियाँ मेरी सहेली, जागरण सखी व दैनिक जागरण जैसी पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं।
व्यंग्य लेखक के रूप में विशिष्ट पहचान हिन्दी की सभी प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित। अमर उजाला व राष्ट्रीय सहारा
में नियमित कॉलम।

पुस्तकें :
1. सत्य जीतता है (हिन्दी अकादमी दिल्ली से प्रकाशित),
2. सम्भावना (साहित्य वीथी दिल्ली से प्रकाशित, वर्ष -2017 फ़्लिप कार्ट व अमेज़न दोनों पर उपलब्ध)
3. Posibility ( English translation of Sambhavana By Deepak Danish )on kindle
4 . गुरु गूगल दोऊ खड़े pustakbazaar.com द्वारा प्रकाशित
5 . क्षमा करना पार्वती pustakbazaar.com द्वारा प्रकाशित
6.ख्वाबों की जिंदगी और 63 कविता
7. वह मैं हूँ
8.घोडा ब्रांड क्रिकेटर मेरे 71 व्यंग्य
9. दर्द और ख्वाब
10. दर्द के इम्यूनिटी बूस्टर्स
11. मुरली की दुनियाँ – ब्लग कलेक्शन
12 .जीत गए तुम
13 .ठहरो अभी तो जीना शुरू किया है
14 .I have just begun to be Translation of Abhi to jeena shuru kiya hai
15 .दरिया को मीठा रहना था
16. लास्ट कॉल – कहानी संग्रह
17 .कुछ तो कहता हूँ – I ब्लॉग कलेक्शन
18 .कुछ तो कहता हूँ -II ब्लॉग कलेक्शन
19. फरिश्ते
20. चाँद पर राइटर पेंटर और आर्टिस्ट भेज...
21. Pain & Dream
22. काश मैं ऐसा इंजीनियर होता

संप्रति : हर समय कुछ करते रहने की इच्छा का बने रहना व पाठकों द्वारा प्रदान किए जाने वाला स्नेह ही मेरे लिखने का आधार है ।

Book Details

Publisher: Pustakbazar.com
Number of Pages: 152
Dimensions: 5"x8"
Interior Pages: B&W
Binding: Paperback (Perfect Binding)
Availability: In Stock (Print on Demand)

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