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पैगंबर-ए-इस्लाम ने फ़रमाया: “यदि कोई शासक चाहे तुम्हारे लिए ज़ालिम हो, वह तुम्हारी पीठ पर कोड़े मारे और तुम्हारा माल छीन ले, तब भी तुम उसकी आज्ञा का पालन करो ।” और दूसरी ओर आपने यह भी कहा: “श्रेष्ठ जिहाद यह है कि कोई व्यक्ति अत्याचारी राजा के सामने सच बात कहे।”
इन दोनों हदीसों पर ग़ौर करने से मालूम होता है कि किसी को कोई शासक अत्याचारी दिखाई दे, तब भी इसके लिए ज़्यादा-से-ज़्यादा जिस हद तक जाने की अनुमति है, वह केवल बातचीत द्वारा सुझाव (advice) देना है, न कि व्यवहारतः विरोधपूर्ण राजनीति करना या शासक को हटाने की कोशिश करना, क्योंकि जंग या टकराव की सबसे बड़ी हानि यह है कि यह काम के अवसरों को बाधित करता ह। इसके मुक़ाबले में अमन का सबसे बड़ा फ़ायदा यह है कि यह काम के अवसरों को अंतिम सीमा तक खोल देता है। जंग या टकराव से हमेशा और ज़्यादा नुक़सान होता है और अमन से हमेशा और ज़्यादा फ़ायदा। यही कारण है कि इस्लाम हर क़ीमत पर और अंतिम सीमा तक जंग और टकराव से बचने की शिक्षा देता है और अमन को हर क़ीमत पर क़ायम करने का आदेश देता है।
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