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इतिहासकारों ने आम तौर पर माना है कि अरब-मुसलमानों के माध्यम से जो ज्ञान-विज्ञान यूरोप पहुँचा‚ आख़िरकार वही यूरोप के नवजागरण (renaissance) या सही शब्दों में प्रथम जागरण पैदा करने का कारण बना। प्रोफ़ेसर हिट्टी ने लिखा है कि 832 ई० में बग़दाद में ज्ञान-सदन बनाने के बाद जिसे बैत-अल-हिक्मा (House of Wisdom) कहा जाता है, अरबों ने जो अनुवाद किए और जो पुस्तकें तैयार की‚ वह लैटिन भाषा में अनूदित होकर स्पेन और सिसली के रास्ते से यूरोप पहुँची और फिर वह यूरोप में नवजागरण के पैदा होने का कारण बनीं।
लेकिन सवाल यह है कि ख़ुद अरब-मुसलमानों के अंदर यह मानसिकता और सोच का विशिष्ट दृष्टिकोण कैसे पैदा हुआ, जबकि वे ख़ुद भी पहले उसी आम पिछड़ेपन की हालत में पड़े हुए थे जिसमें सारी दुनिया के लोग पड़े हुए थे। इसका जवाब सिर्फ़ एक है, वह है— ‘ईश्वर को एक मानने का विश्वास’ (monotheism)। यही उनके लिए इस मानसिक और व्यावहारिक क्रांति का कारण बना।
इस पुस्तक का उद्देश्य केवल यह है कि एक विशेष ऐतिहासिक घटना, जिसे लोगों ने सिर्फ़ एक मुस्लिम समुदाय के कारनामों के नाम पर लिख रखा है‚ इसे ज़्यादा सही तौर पर ‘इस्लाम की देन’ के अंतर्गत दर्ज किया जाए। यह केवल एक ज्ञात घटना को स्पष्ट रूप से सामने लाना है‚ न कि किसी अज्ञात घटना की सूचना देना।
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