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परिसरक आपसी संबंध कोनो व्याख्याक मोहताज नहि छल । केओ कोनो सीमानसँ बान्हल नहि छल । के कतेक दिन ककरा संगे आ कतए रहत तकर कोनो अवरोध नहि छल । एक हिसाबे ओहिठामसभ अबारा भए गेल छल । इहो कहल जा सकैत छल जे ओ सभ एकटा नवीन जीवनपद्धतिक शिल्पकार छल । निश्चय ओ सभ एकटा अपरिचित मार्गपर चलि रहल छल। एहन मार्ग जकर गंतव्यक कोनो ठेकान नहि छल । बस ओ सभ जेना-तेना सभ तरहक बंधनसँ मुक्त भए जेबाक हेतु आतुर छल । ई प्रयासमे परिसरक कैकटा पीढ़ी लागल रहल । आखिर पुरना देबालसभ ढहल,ढनमनाएल ,खसि गेल । मुदा तकर बाद.....?असंयत,उच्छृंखल,अकल्पनीय झंझावातसँ जुझैत सांस्कृतिक अवशेष मात्र रहि गेल छल…….. ।
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