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मोन तँ भगवान सभकेँ देने छथिन । राजा,रंक,फकीरसभ मोने-मोन किछु सोचि सकैत छथि ,किछु भोगि सकैत छथि । जरूरी नहि थिक जे ओ बस्तु हुनका भेटिए जानि मुदा तेँ की ? सोचबोसँ गेलाह?कै बेर अतृप्त इच्छा,आकंक्षा मोनमे गड़ल रहि जाइत छैक ।
मोनक संसारो गजब छैक । एकहि क्षणमे ओ कतबो फटकी लोक लग पहुँचि सकैत अछि । जे से सोचि सकैत अछि , जाहि बस्तुकेँ लोक कहिओ नहि पाबि सकैत अछि,नहि पहुँचि सकैत अछि ,ओतए मोन अपन कल्पना शक्ति द्वारा पहुँचि जाइत अछि। एहि तरहें कतेको प्रकारक इच्छा,आकांक्षा अवचेतन मोनमे सैतल धएल रहैत छैक आ मौका पबितहि ओकरापर हाबी भए जाइत अछि । तरहारामे पहुँचल लोकसभक मनोदशा एहनेसन छल । कहबी छैक जे नहि किछु तँ सोचबोसँ गेलहुँ? तेँ ने कै बेर आन्हरक नाम नयनसुख आ नितांत मूर्खक नाम सरस्वती नंदन राखि देल जाइत छनि । आखिर हुनका लोकनिक माता-पिताक इच्छा-आकांक्षाक अभिव्यक्ति होएत कोना? कारण सभ माए-बाप अपन संतानक हेतु नीकसँ नीख मनोरथ राखैत अछि ।
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