You can access the distribution details by navigating to My Print Books(POD) > Distribution
पंडित जगन्नाथ शुक्ल, एक बहुमुखी प्रतिभा के धनी कलाकार, जिन्होंने हिंदी रंगमंच, रेडियो और भोजपुरी सिनेमा में अपनी अमिट छाप छोड़ी। अपने जीवनकाल में ही वे एक बड़ा नाम बन गए थे, जिनकी कलात्मक प्रतिभा और कला के प्रति अटूट समर्पण ने उन्हें हर मंच पर अमर कर दिया। पटना के रंगमंचों से शुरू हुआ उनका सफर, रेडियो की लहरों पर गूंजने लगा और अंततः सिनेमा के पर्दे पर जाकर अपनी चमक बिखेरने लगा। उनके अद्भुत प्रदर्शन, दिशानिर्देशन और मधुर आवाज ने हर दर्शक को मंत्रमुग्ध कर दिया। शुक्ल जी का प्रभाव हर जगह छाया रहा। आज भी, उनकी कलात्मक प्रतिभा और कला के प्रति अटूट समर्पण विद्वानों और लेखकों को उनकी जीवन यात्रा का अध्ययन करने के लिए प्रेरित करता है।
बिना किसी औपचारिक प्रशिक्षण के, मात्र 6 वर्ष की आयु में भक्त प्रह्लाद की भूमिका निभाकर जगन्नाथ शुक्ल का नाटकीय सफर शुरू हुआ। उन्होंने पारसी थियेटर की विशेषताओं को हिन्दी रंगमंच पर उतारा। जगन्नाथ शुक्ल बिहार के शुरुआती और पहले अभिनेता थे जिन्होंने हर क्षेत्र में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया। पहली भोजपुरी फिल्म “गंगा मइया तोहे पियरी चढ़इबो" में उन्होंने अपना किरदार इतनी शिद्दत से निभाया कि यह फिल्म दर्शकों के दिलों में उतर गई। इस फिल्म से जुड़ी कई रोचक कहानियां हैं जो जगन्नाथ शुक्ल के जीवन, फिल्म निर्माण और उनकी सफलता की यात्रा को दर्शाती हैं।
विस्तृत शोध और गहन अध्ययन के फलस्वरूप, जगन्नाथ शुक्ल के जीवन की अनकही गाथाओं को उजागर करती यह पुस्तक अद्भुत कौशल से लिखी गई है। इसके पन्नों में आपको उनके जीवन के अनछुए पहलुओं को दर्शाते हुए दुर्लभ और अप्रकाशित तस्वीरों एवं लेखों का खजाना मिलेगा। यह पुस्तक केवल एक जीवनी नहीं है, बल्कि उस समय के सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक परिवेश का भी सजीव चित्रण है। इसमें आप उस दौर के भारत को महसूस कर पाएंगे, जिसमें जगन्नाथ शुक्ल ने अपना जीवन जिया और कला जगत पर छाते चले गए।
Currently there are no reviews available for this book.
Be the first one to write a review for the book Jagannath Shukla.