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"सिर्योझा" एक छोटे बालक की आँखों से आसपास की दुनिया को देखने का अनुभव है. बच्चे की मानसिकता को समझने के लिये उसी के स्तर पर जाना होता है, इस बात को व्येरा पनोवा अत्यंत रोचक ढंग से दर्शाती हैं.
सिर्योझा बहुत छोटा बालक है, युद्ध में उसके पिता वीरगति को प्राप्त हो चुके हैं. अपने आसपास के वातावरण से, लोगों से, अजनबियों से, अच्छे व्यक्तियों से, बुरे व्यक्तियों से सिर्योझा बहुत कुछ सीखता है.
इस नादान, पर समझदार और निडर बालक की आँखों से व्येरा पनोवा तत्कालीन समाज के ही दर्शन कराती हैं – अत्यंत सरल और प्रभावपूर्ण भाषा में.
उपन्यास पढ़ते हुए आप सिर्योझा से प्यार करने लगेंगे! -आ. चारुमति रामदास
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