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कभी सोचा नहीं था कि अपने लिखे हुए टुकड़े, जो बस नोटबुक के किसी कोने में पड़े रहते थे,
एक दिन किताब का रूप ले लेंगे।
शुरुआत बस यूँ ही हुई थी —
थोड़े ख्याल, थोड़ी बातें, कुछ अधूरी रातें और कॉफी का कप।
फिर धीरे-धीरे शब्द दोस्त बन गए।
“मेरी कृतियाँ” मेरे उन्हीं दोस्तों की महफ़िल है —
कभी कविता के रूप में, कभी किसी छोटी सी कहानी में,
तो कभी बस मन की बातों में ढले हुए एहसास।
मैं कोई बड़ा लेखक नहीं, बस इतना जानता हूँ कि जो दिल में था, वही कागज़ पर उतार दिया।
अगर इन पन्नों में तुम्हें अपनी सी कोई बात लगे —
तो समझ लेना कि यह किताब लिखने का मकसद पूरा हो गया।
शुक्रिया उन सबका, जिन्होंने मुझे लिखा हुआ महसूस करवाया।
— शिवम शर्मा
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