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पुलकित शर्मा, दौराला की धूल भरी गलियों से निकलकर मुंबई में सफलता, शोहरत और अपने सपनों की ऊँचाइयों तक पहुँचने का सपना देखता है। लेकिन हर सपना अपनी कीमत माँगता है-कभी रिश्तों में दरार बनकर, कभी नैतिक समझौतों में, और कभी ऐसे गुनाहों के बोझ में जिनका हिसाब ज़िंदगी भर चुकाना पड़ता है।
यह कहानी सिर्फ एक आदमी के उदय और पतन की नहीं, बल्कि उन अदृश्य जालों की है, जिनमें महत्वाकांक्षा, प्रेम और धोखे की परछाइयाँ हमें घेर लेती हैं।
शांत रोमांस से लेकर विश्वासघात तक, और अंत में उस अंधेरे सच तक-
“सपनों की राख” एक रोमांचक और भावनात्मक यात्रा है, जो हमें यह सोचने पर मजबूर करती है:
क्या हर सपना पूरा होना चाहिए? या कुछ सपनों को अधूरा ही रह जाना बेहतर है?
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