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निष्कर्ष : स्वयं की चुप्पी में सत्य पूरी पुस्तक एक ही प्रश्न पूछ रही है, आप कौन हैं? हमने हमारी हर पहचान, आपकी दौड़, आपकी ख़ुशी की परिभाषा, आपके डर, यहाँ तक कि आपके जीवन और मृत्यु की सच्चाई को चुनौती दी। हमने यह जानने की कोशिश की, कि आप जिस ब्रह्माण्ड को देखते हैं, वह आपकी कल्पना है, या आप उस ब्रह्माण्ड की कल्पना हैं। इस लंबी दार्शनिक दौड़ के बाद, हम एक चौराहे पर आकर खड़े हैं, जहाँ कोई सड़क आगे नहीं जाती। सत्य कोई ऐसी मंज़िल नहीं है, जिसे पैसे या सफलता से खरीदा जा सके (जैसा कि हमने "आप क्यों दौड़ रहे हैं?" में पूछा था), न ही यह कोई परिभाषा थी जिसे शब्दों में बाँधा जा सके (जैसा कि हमने "सत्य क्या है?" में पूछा)। सत्य वह पल है, जब ढूंढने वाला रुक जाता है। सवालों का अंत और भ्रम की उपयोगिता : हमने अपनी यात्रा "तुम कौन हो?" से शुरू की और पाया कि हमारी पहचान किसी और की राय पर टिकी हुई है। हमने पूछा "क्या यह दुनिया हमारा भ्रम है?" और पाया कि हमारा मस्तिष्क एक ऐसा फ़िल्टर है, जो वास्तविकता को वैसा दिखाता है, जैसा आप देखना चाहते हैं, न कि जैसा वह है। ज़िंदा होने का असली प्रमाण : हमने पूछा "क्या तुम सच में ज़िंदा हो?"। ज़िंदा होने का प्रमाण दिल की धड़कन नहीं है, बल्कि होश की धड़कन है। आपकी अधिकांश ज़िंदगी एक ऑटोपायलट पर जी गई 'मृत्यु' थी, क्योंकि हम अपने हर कर्म के प्रति जागरूक नहीं थे। यह दौड़ इसलिए ज़रूरी थी : यह भ्रम की दुनिया (The Illusion), जिसे आपने शायद खुद ही बनाया था ("क्या हमने ब्रह्माण्ड बनाया?"), वह कोई दुश्मन नहीं है। > भ्रम आपका शिक्षक है।
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